Sindhi Wedding Rituals

सिंधी शादी की रस्में इन हिंदी

सिंधी शादी की रस्में हिंदू विवाह की तरह ही होती है। सिंधी समाज को हिंदू धर्म का ही एक अंग माना गया है। सिंधी धर्म की अपने कुछ विशेषताएं होती हैं और अपनी एक अलग पहचान होती है। हम सभी जानते हैं कि सिंधी लोग अपने आप में बहुत विशिष्ट होते हैं। उनके जन्म से लेकर मरण तक के रीति रिवाज विविधताओं से भरे होते हैं। सिंधी धर्म में अंतर जाति विवाह नहीं होते। अगर कोई सिंधी लड़का या लड़की किसी दूसरे धर्म के व्यक्ति से शादी कर लेता है तो वह व्यक्ति स्वयं भी सिंधी धर्म में नहीं रह सकता। सिंधी शादी अपने आप में एक भव्य और सादगीपूर्ण शादी होती है। जी हां भव्य भी होती है और सादगी से भी भरी होती है यही होती है सिंधी शादी की विशेषता। सिंधी शादी के बारे में जानने के लिए हमें इसके रीति-रिवाजों के बारे में जानना होगा तो आइए जानते हैं कि क्या होता है एक सिंधी शादी में और क्यों अलग है एक सिंधी शादी हिंदू विवाह से

कच्ची मिश्री की रस्म

सिंधी शादी में अन्य शादीयों की तरह ही मैच मेकिंग होती है लेकिन यह मैच मेकिंग केवल और केवल सिंधी परिवारों के लिए ही होती है। लड़के/ लड़की के लिए रिश्ता सोशल साइट्स, अखबारों द्वारा ढूंढा जाता है या फिर रिश्ते दारों, पड़ोसियों द्वारा उनकी जान पहचान का कोई रिश्ता बताया जाता है। लड़के/ लड़की का बायोडाटा और फोटो पसंद आने पर परिवार वाले आपस में मिलते हैं।

कच्ची मिश्री/ कचहरी मिश्री की रस्म

लड़के/ लड़की में सबकुछ पसंद आने पर और सब कुछ सही होने पर कच्ची मिश्री के रस्म को किया जाता है। इस रस्म में दूल्हा दुल्हन के परिवार वाले आपस में नारियल और मिश्री का एक टुकड़ा शगुन के तौर पर देते हैं। दूल्हे के घर की कोई सुहागन स्त्री दुल्हन के सर पर लाल चुन्नी उड़ आती है और उसकी गोद में 5 तरह के फल रखती हैं। इस रस्म को कच्ची मिश्री की रस्म कहा जाता है।

जान्या / जनेऊ/ जेन्या की रस्म

सिंधी समाज में इस रस्म में पंडित जी एक पवित्र अनुष्ठान करते हैं। जिसमें एक मंत्र जाप करते हुए दूल्हे को पवित्र धागा / जनेऊ पहनाया जाता है। इस रस्म को जान्या की रस्म कहते हैं। इस पवित्र मंत्र का जाप दूल्हे को जीवन भर करना पड़ता है। जनेऊ पहनने के बाद वह व्यक्ति विवाह करने योग्य हो जाता है। वह व्यक्ति अपने सिंधी समाज के सभी संस्कारों को नियम पूर्वक कर सकता है। अगर जान्या की रस्म को नहीं किया जाता है तो विवाह अधूरा माना जाता है। जिस तरह से हिंदू विवाह में लड़के के विवाह से पहले उसका यज्ञोपवीत संस्कार अति आवश्यक है उसी तरह से सिंधी समाज में जान्या का संस्कार जरूरी होता है।

पक्की मिश्री/ पाकी मिश्र की रस्म

पक्की मिश्री की रस्म में दूल्हा दुल्हन एक दूसरे को अंगूठी पहनाते हैं। परिवार वाले औपचारिक रूप से लड़का/ लड़की दोनों को होने वाले पति पत्नी के रूप में स्वीकार कर लेते हैं। इस रस्म में दूल्हा-दुल्हन दोनों के परिवार रिश्तेदार और दोस्त किसी विशेष जगह जो लड़के लड़की का घर, मंदिर या फिर कोई होटल हो सकता है, वहां पर एकत्रित होते हैं। दूल्हा दुल्हन के घरवाले एक दूसरे के लिए शगुन लाते हैं। दुल्हन के घर से दूल्हे के लिए और दूल्हे के घर वालों के लिए कपड़े दिए जाते हैं। दूल्हा और दुल्हन एक दूसरे को अंगूठी पहनाते हैं।

दूल्हे के घरवाले दुल्हन के लिए श्रृंगार का सामान, जेवर और कपड़े लेकर आते हैं। दुल्हन की गोद में श्रृंगार का सामान दूल्हे की बहन , मां और भाभी डालती हैं। दूल्हे की मां दुल्हन की मां को एक मिट्टी का कलश देती है। जोकि मिश्री से भरा होता है। दुल्हन की मां इस कलश को सबके सामने खोलती है। दुल्हन के घर की सात विवाहित महिलाएं इस बर्तन पर भगवान गणेश जी की चावल हल्दी और रोली से आकृति बनाते हैं।

इस अवसर को गणेश जी का आशीर्वाद आह्वान कहा जाता है। इस पूरे कार्यक्रम में सिंधी पुजारी अपने मंत्र बोलते रहते हैं। अंगूठी पहनाने की रस्म को युगल विनिमय कहा जाता है। इसी समय पुजारी दूल्हे दुल्हन की कुंडली के अनुसार शादी का समय निकालते हैं। परिवार वाले एक दूसरे के साथ मुंह मीठा कर के खुशियां मनाते हैं।

अगर कार्यक्रम लड़की के घर हो रहा है तो लड़के वाले फल मिठाई और मेवे लेकर लड़की के घर आते हैं। जब दूल्हा दुल्हन एक दूसरे को अंगूठियां पहना देते हैं। उसके बाद दावत व गीत संगीत का कार्यक्रम शुरू होता है। जाते समय शगुन के तौर पर लड़की वाले लड़के वालों को फल, मेवे, मिठाई का टोकरा देते हैं। जिसे वे अपने रिश्तेदारों में बांटते हैं।

बेराना सत्संग की रस्म

सगाई के बाद एक शुभ मुहूर्त देखकर दोनों घरों में देवता बिठाए जाते हैं। देवता बिठाने का अर्थ है कि भगवान की मूर्ति को घर में स्थापित करना। सिंधी परिवारों में झूलेलाल उनके देवता होते हैं। भगवान झूलेलाल की पत्थर की मूर्ति दूल्हा और दुल्हन दोनों के घरों में लगाई जाती हैं। धार्मिक अनुष्ठान के द्वारा भगवान झूलेलाल की मूर्ति को घर में स्थापित किया जाता है। मूर्ति स्थापना के बाद उनकी सिंधी रीति-रिवाजों द्वारा पूजा की जाती है। झूलेलाल देवता की पूजा के बाद सत्संग व भक्ति संगीत का कार्यक्रम होता है। इस कार्यक्रम के बाद सिंधी व्यंजन प्रसाद के रूप में परोसे जाते हैं।

तिह/ तीह की रस्म

सिंधी परिवारों में हिंदू परिवारों की तरह ही गणपति पूजा होती है। यहां पर गणपति पूजा को तिह की रस्म कहा जाता है। गणेश जी की मूर्ति की विधि विधान पूर्वक पूजा होती है। गणेश जी विघ्न विनाशक है और हर मनोकामना पूर्ण करने वाले हैं। सिंधी परिवारों में गणेश जी की पूजा करके उनसे आने वाले विवाह को सकुशल संपन्न कराने की प्रार्थना की जाती है। भगवान गणपति से दूल्हा दुल्हन को आशीर्वाद देने की प्रार्थना की जाती है जिससे उनका वैवाहिक जीवन सुखमय हो।

दुल्हन के घर वाले पंडित जी चावल चीनी, लौंग इलायची, मसाले, नारियल व 21 तरह की मिठाई, खजूर हरे रंग की रेशमी धागे की गेंद एक थैले में लेकर दूल्हे के घर जाते हैं। इन सभी सामग्रियों के साथ कागज के टुकड़े पर शादी के समय का मूहुर्त लिखा होता है। अपने साथ लाए कागज को लेकर वह दूल्हे के घरवाले पुरोहित जी के साथ मिलकर गणेश जी की पूजा कराते हैं और वापस घर आकर उस लगन के कागज को दूल्हन की गोद में रखते हैं।

लाड़ा की रस्म

गणेश जी की पूजा के बाद परिवार में शुभ सगुन की शुरुआत हो जाती है। घर में बन्ना बन्नी के गीत गाये जाते है। आज की रस्म के बाद से हर दिन शादी होने तक शादी वाले घर में गीत संगीत का कार्यक्रम चलता है। घर में ढोलक बैठा दी जाती है। घर की बुजुर्ग महिलाओं से लेकर छोटे छोटे बच्चे तक इस रस्म में हिस्सा लेते हैं। महिला मंगल गान गाती है और बच्चे नाच गाकर खुशियां मनाते हैं।

सांठ/ वनवास/ सावन/ बांधा की रस्म

जिस तरह से हिंदू विवाह में तेल की रस्म और लग्न की रस्म होती है। उसी का मिलाजुला रूप सिंधी समाज में सांठ की रस्म या वनवास होता है। यह रस्म शादी से एक या दो दिन पहले होती है। पंडित जी पूजा करके दूल्हा दुल्हन के पैरों में एक छल्ला बांघते हैं जोकि दूल्हा दुल्हन का रक्षा कवच होता है। यह रस्म दूल्हे और दुल्हन के घर में अलग-अलग होती है। इसके बाद सात सुहागन दूल्हा दुल्हन के सर पर तेल लगाती हैं। इस रस्म के बाद दूल्हे दुल्हन को अपने अपने घरों में नए जूते पहन कर एक मिट्टी का सकोरा या दिया तोड़ने को दिया जाता है। अगर दोनों यह दिया तोड़ पाते हैं तो यह शुभ संकेत होता है कि उनका आने ज्यादा जीवन खुशियों से भरा रहेगा। वे जीवन की हर कठिन परिस्थितियों का भी आसानी से सामना कर पाएंगे। इस रस्म के बाद दूल्हे के कपड़े सारी औरतें मिलकर फाड़ती हैं। इस रस्म को करने का उद्देश्य है कि दूल्हे के ऊपर अगर कोई बुरी नजर लगी हो या उसके आसपास बुरी शक्तियां हो तो वो दूर हो जाएं और उसका आने वाला जीवन सुखमय हो।

सागरी की रस्म

इस रस्म में दूल्हा और दुल्हे के परिवार वाले उपहार व सगुन लेकर दुल्हन से मिलने आते हैं। खुशी के प्रतीक स्वरूप दोनों तरफ के परिवार के सदस्य दूल्हा-दुल्हन पर फूल बरसाते हैं। कहीं कही सिर्फ दुल्हन को फूलों से नहलाया जाता है और दूल्हे को फूलों की माला पहनाई जाती है।

घरी पूजा

इस रस्म में दूल्हा-दुल्हन के घर में गेंहूं पीसा जाता है। घर की सुहागन स्त्रियां इस दिन इकट्ठा होकर अनाज पीसती हैं। घर में गीत, संगीत का कार्यक्रम होता है। इस रस्म में दूल्हा दुल्हन की मां अपने सर पर मिट्टी या तांबे का कलश लेकर घर से बाहर जाती हैं। उस कलश में पानी भरा होता है जब वो वापस आती हैं तो उन्हें फूलों की माला पहनाई जाती हैं। उसके बाद उस मिट्टी के कलश की पूजा होती है। इसके बाद दूल्हा-दुल्हन को 5 किलो गेहूं दिया जाता है जो कि उन्हें 21 मुट्ठी में भरकर पुजारी जी के लिए देना होता है। दुल्हन को ध्यान रखना होता है की उनकी 21 मुट्ठी मैं यह 5 किलो गेहूं आ सके यह रस्म समृद्धि का संकेत होती है।

नव ग्रह पूजन

इस रस्म में दूल्हा-दुल्हन दोनों के घरों में नवग्रह पूजन किया जाता है। उनको विवाह में वर वधू को अपना आशीर्वाद देने के लिए आमंत्रित किया जाता है। नवग्रहों की पूजा में गणेश जी की पूजा, ओंकार पूजा, लक्ष्मी जी की पूजा और कलश पूजा भी शामिल होती है। यहां देवताओं को आमंत्रण देने के साथ साथ ही उनके भोग के लिए दूध पानी और अन्य व्यंजन रखे जाते हैं। इस रस्म को दुल्हन के मामा चाचा भाई पुरुष वर्ग करते हैं।

हल्दी मेहंदी की रस्म

इसमें दूल्हा दुल्हन व उनके परिवार की सुहागिन स्त्रियां पहले दुल्हा दुल्हन को हल्दी व तेल और उबटन लगाते हैं। उसके बाद परिवार के अन्य सदस्य उन दोनों को हल्दी लगाते हैं। शाम के समय मेहंदी की रस्म होती है जिसमें पहले दूल्हा दुल्हन को उनके घरों में मेहंदी लगाई जाती है फिर परिवार की सभी स्त्रियां मेहंदी लगवाती हैं। इस दिन सुबह हल्दी के गाने गाए जाते हैं और शाम को गीत संगीत का कार्यक्रम चलता है। जिसमें परिवार के हर सदस्य अपनी अपनी परफॉर्मेंस देते हैं वाले मेहंदी लगाते हैं।

गारो धागो की रस्म

इस रस्म में पुजारी दूल्हा दुल्हन के हाथों में पवित्र धागा बांधता है। अब आज के बाद दूल्हा दुल्हन घर से बाहर सिर्फ शादी के समय ही निकलते हैं उत्तर भारत में इस धागे को कंकण कहा जाता है या पवित्र धागा दूल्हा दुल्हन की रक्षा के लिए बांधा जाता है।

बारात का प्रस्थान

दूल्हे को उसके चाचा या बड़े भाई सजाते हैं दूल्हे के बालों में एक रिबन बांधा जाता है जो कि उसे बुरी नजर से बचाने का संकेत है। उसके गले में एक लाल कपड़ा बांधा जाता है जिसमें एक नारियल बंधा होता है। लाल कपड़े के साथ साथ एक सफेद रंग के कपड़े को भी उसके गले में पहनाया जाता है। जिसमें कुछ नगदी बंधी होती है। नगदी के साथ साथ इस सफेद कपड़े में चावल और इलायची भी बांधे जाते हैं। बारात प्रस्थान के समय दूल्हे की मां उसका तिलक करती है आरती उतारती है। दूल्हा गाजे-बाजे के साथ दुल्हन के घर के लिए प्रस्थान कर देता है। पूरे रास्ते उसके भाई बहन और दोस्त नाश्ता उठाते हुए दुल्हन के घर जाते हैं।

दूल्हे का स्वागत पांव धुलाई/ पौन धुलाई

दूल्हे का स्वागत दुल्हन के घर में दूल्हे की मां के द्वारा होता है। दुल्हन की मां दूल्हे का स्वागत आरती से करती है। द्वाराचार के समय पर दूल्हे से पैरों से मिट्टी का दीपक तुड़वाया जाता है। जो दूल्हे की नजर उतारने का संकेत होता है। बारातियों को यहां पर मिश्री या चीनी और इलायची दी जाती है। बारातियों के स्वागत के लिए उन पर गुलाब जल का छिड़काव किया जाता है। दूल्हे को मंडप पर ले जाने से पहले दुल्हन के माता-पिता दूल्हा-दुल्हन के पैरों को दूध और पानी से धोते हैं। दूल्हे और दुल्हन को मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु का प्रतीक माना जाता है।

जयमाल पल्ली पलो हथियालो की रस्म

जय माल के समय दूल्हा दुल्हन एक दूसरे को माला पहनाते हैं। उसके बाद मंडप में दोनों को मंडप में ले जाया जाता है। इस समय पंडित जी दूल्हा दुल्हन की चुन्नी को एक दूसरे के साथ बांधते हैं। इस रस्म को पल्ली पलो की रस्म कहते हैं। यह गांठ शादी के बाद ही खुलती है। साथ ही साथ उन दोनों के सीधे हाथ को भी एक धागे से बांध दिया जाता है। इस रस्म को हथियालो की रस्म कहते हैं। इस रस्म के बाद पंडित जी गणेश पूजा करते हैं। लक्ष्मी पूजा करते हैं और 64 देवियों से वर वधु को आशीर्वाद देने की प्रार्थना करते हैं।

कन्यादान चार फेरों की रस्म/ सप्तपदी की रस्म

कन्यादान की रस्म में दुल्हन का पिता दूल्हे के हाथ में अपनी बेटी का हाथ सौपता है और दूल्हे से अपनी बेटी का ध्यान रखने का आश्वासन देता है। कन्यादान के बाद चार फेरों की रस्म होती है जिसमें सिंधी समाज में सात फेरों की जगह 4 फेरे ही लिए जाते हैं। पंडित जी अग्नि प्रज्वलित कराते हैं और मंत्रों का जाप करते हैं। फेरों के बाद दुल्हन का नाम बदल दिया जाता है। दुल्हन का नाम पंडित जी दूल्हे के नाम और दुल्हन की कुंडली के आधार पर रखते हैं। चारों फेरे पूर्ण होने के बाद सप्तपदी की रस्म होती है। जिसमें वर वधु चावल के सात छोटे-छोटे ढेरों पर अपने दाहिने पैर रखते हैं। इस रस्म के बाद पति पत्नी एक दूसरे का मुंह मीठा कराते हैं और सब से आशीर्वाद लेते हैं।

विदाई

दुल्हन के माता-पिता व अन्य रिश्तेदार व मित्र दूल्हा दुल्हन को सदा सुखी रहने का आशीर्वाद देते हैं। दुल्हन की विदाई हर किसी को भाव विह्वल कर देती है। लोग भारी मन से दुल्हन को विदा करते हैं और उसके आगामी जीवन के सुखमय होने की ईश्वर से प्रार्थना करते हैं। उसके बाद दुल्हन अपने नए घर के लिए प्रस्थान करती है।

दातार, नमक मुट्ठी के रस्म

शादी के बाद दुल्हन जब अपने नए घर में आती है तो दूल्हे के घर वाले दुल्हन का ग्रह प्रवेश कराते समय उसके पैर दूध और पानी से धुलाते हैं। घर में आने पर वह घर के सभी कोनों में दूध से छिड़काव करती है। दुल्हन अपनी मुट्ठी में नमक लेकर अपने पति के हाथ में नमक रखती है। दूल्हा इसे वापस दुल्हन के हाथ में देता है। इस रस्म नमक मुट्ठी की रस्म कहते हैं। इस रस्म को वह तीन बार करती है। यही प्रक्रिया दुल्हन अपने परिवार के सभी सदस्यों के साथ करती है।

सतौरा

दुल्हन के माता-पिता दुल्हन को पगफेरे के लिए आमंत्रित करते हैं। जिसे सिंधी समाज में सतौरा कहा जाता है। दूल्हा-दुल्हन का वहाँ पर भव्य स्वागत होता है। दूल्हा-दुल्हन को स्नान कराया जाता है।वापसी में दुल्हन और दूल्हे को उपहार दिए जाते हैं।

छनार की रस्म

शादी के अगले दिन पुजारी द्वारा भगवान झूलेलाल की जो मूर्ति स्थापित की जाती है उसे पूजा के बाद खंडित किया जाता है। छनार की रस्म के बाद दूल्हे की मां दूल्हा दुल्हन को दूध और चीनी मिले चावल के सात कौर खिलाती है।

गडवानी की रस्म

दूल्हे का परिवार दुल्हन का स्वागत एक शानदार दावत से करता है। इस दावत में तरह-तरह के शाकाहारी हिंदी व्यंजन बनाए जाते हैं। इस दावत में दूल्हे का परिवार दुल्हन के घर वालों और परिवार वालों को भी आमंत्रित करता है।

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