kashmiri wedding traditions

कश्मीरी शादी की रस्में, कश्मीरी शादी समारोह, कश्मीरी शादी की परंपराएं

कश्मीर भारत का एक सुन्दर राज्य है। जहां के निवासी बहुत सुंदर हैं व उनकी संस्कृति भी उन्ही की तरह सुन्दर व समृद्ध है। कश्मीर के त्यौहार व रीति-रिवाज भारत के अन्य राज्यों से थोड़ा हटके हैं। कश्मीर की शादी में खुशी व उत्सव की भरमार होती है। कश्मीरी शादी दो तरह की होती हैं हिन्दू विवाह व मुस्लिम विवाह। आमतौर पर मुस्लिम शादियां सब जगह एक जैसी ही होती हैं। कश्मीर में हिन्दू आबादी में अधिकतर पंडित ही रहते हैं। तो यह सारी रस्मे कश्मीरी पंडितों की शादी की रस्मों के नाम से जानी जाती हैं। अन्य जातियों के विवाह की रस्में भी करीब करीब ऐसी ही होती हैं। तो आइए जानते हैं कश्मीरी शादी की रस्में

मंजीम्योर /मैचमेकिंग

कश्मीरी विवाह में मैच मेकिंग मैच की रस्म को मंजीम्योर कहा जाता है। लड़के/ लड़की के परिवार वाले व नाते रिश्तेदार अपनी जान पहचान की या रिश्तेदार अपनी संबंधी लड़के लड़की के विषय में अपने संबंधियों व उनके परिवार वालों को बताते हैं। इस रस्म में दूल्हा दुल्हन के परिवार वाले आपस में मिलते हैं। आपस में लड़के लड़कियों के विषय में जानकारी प्राप्त करते हैं और एक दूसरे को अवगत कराते हैं। सब कुछ पसंद आने पर आगे की रस्में होती हैं
भारत के अन्य राज्यों के हिंदू विवाह की तरह ही कश्मीर में भी जन्म कुंडली मिलाई जाती है। जब जन्म कुंडली मिल जाती है तब आगे की रस्में संपन्न की जाती है।

विचनिगासुन

जब लड़की लड़की की कुंडली आपस में मिल जाती है तो पुरोहित शादी और सगाई का मुहूर्त निकालते हैं। जिसके अनुसार आगे के कार्यक्रम संपन्न होते हैं।

कसम दारी की रस्म

इस रस्म में जब लड़के/ लड़की के परिवार वालों को सब कुछ पसंद आ जाता है तो वे लड़के/ लड़की के हाथों में शगुन देते हैं। जिसे उत्तर भारत में वरीक्षा की रस्म भी कहा जाता है। इस रस्म के बाद यह निश्चित हो जाता है कि अब इन दोनों का विवाह होने वाला है और उनके परिवार वाले अब उनके लिए कोई और रिश्ता नहीं देखेंगे।

कासमसुखा/ बन्ना समारोह/ सगाई समारोह

इस रस्म में लडका लडकी का परिवार दिन में मंदिर में या एक दूसरे के घर में मिलता है। इस रस्म में लड़की लड़की के परिवार वाले एक दूसरे के साथ मिलकर पूजा करते हैं। सगाई की रस्म अधिकतर शादी से 1 दिन पहले ही होती है। इस जश्न से पहले घर की सफाई होती है। दोनों परिवारों के बुजुर्ग एक दूसरे को पुष्प व उपहार प्रदान करते हैं। दुल्हन का परिवार आमंत्रित व्यक्तियों को विशेष कश्मीरी शाकाहारी दावत देता है। दावत के बाद दूल्हा दुल्हन के घर संगीत का कार्यक्रम होता है। इस कार्यक्रम में लुमनकारी नमक वाद्य यंत्र का प्रयोग किया जाता है। इस संगीत समारोह में अधिकतर कश्मीरी लोकगीत गाए जाते हैं। इस रस्म के बाद दुल्हन के परिवार की तरफ से दूल्हे के परिवार को 51 थाल भेजे जाते हैं। इन थालों में फल, मेंवे, मिठाई होते हैं।

लिवुन और क्रोल खानून

इस रस्म में दुल्हा व दुल्हन दोनों के घरों को साफ-सफाई के बाद फूलों से सजाते हैं। दुल्हा दुल्हन के परिवार वाले एक दूसरे को उपहार देते हैं। लड़का लड़की एक दूसरे को अंगूठी पहनाते हैं। इस रस्म के बाद वाजा समारोह होता है। रसोईया जिसे बाजा कहते हैं एक मिट्टी का तंदूर रखता है। जिस पर उस दिन का भोजन बनता है और शादी तक भोजन उसी तंदूर में बनता है। इस दिन तंदूर में कश्मीरी पकवान वुवी विशेष तौर पर बनता है।

वानवुन की रस्म

जिस तरह से उत्तर भारत में लगन लिखने के बाद हर शाम नाच गाने व शादी के संगीत के कार्यक्रम चलते हैं उसी प्रकार से कश्मीर में लिवोन के बाद हर शाम दूल्हा दुल्हन के घर संगीत व नृत्य का कार्यक्रम होता है। इस रस्म में शादी के दिन तक शाम के समय कश्मीरी लोकगीत, नृत्य व खाना-पीना चलता है। कश्मीरी शादियों में हर शाम को दूल्हा दुल्हन के घर उनके परिवार वाले, पड़ौसी व रिश्तेदार इकट्ठा होते हैं। कश्मीरी नृत्य व गीत बहुत मनभावन होते हैं सभी लोग पारंपरिक कश्मीरी लोकगीत नृत्य का आनंद लेते हैं।

मेनजीरत की रस्म

मनकीरत की रस्म में दुल्हन के मामा मामी दुल्हन के पैर धोते हैं और दुल्हन को स्नान कराते हैं। इस रस्म में दुल्हन को एक चौकी पर बिठाकर उसके ऊपर पवित्र जल का अभिषेक किया जाता है। उसके बाद मामा मामी ही मेहंदी का शगुन करते हैं। मामा मामी के मेहंदी की रस्म निभाने के बाद परिवार के और लोग भी मेहंदी की रस्म निभाते हैं। दुल्हन की मेहंदी लगने के बाद परिवार की अन्य लड़कियां और औरतों को भी मेहंदी लगवाई जाती है। मेहंदी के रस्म के बाद दावत का आयोजन किया जाता है।

स्नाजरू की रस्म

इस रस्म में दूल्हे के परिवार वाले दुल्हन के लिए श्रृंगार का सामान व ताजे फूलों के बने हुए आभूषण भेजते हैं। श्रृंगार के सामान को बहुत सुंदर ढंग से सजाकर भेजा जाता है। इस रस्म में दुल्हन को पवित्र जल से स्नान कराया जाता है। उसके बाद दूल्हे के घर से आए हुए सोलह सिंगार के सामान व ताजे फूलों के बने हुए गहनों से दुल्हन को सजाया जाता है।

दिवागोन की रस्म

इस रस्म में दूल्हा दुल्हन भगवान शंकर व मां पार्वती की पूजा करते हैं। दूल्हा दुल्हन के परिवार वाले व दूल्हा-दुल्हन व्रत रखते हैं। इस रस्म में दूल्हा दुल्हन एक दूसरे के लिए मां पार्वती व भगवान शंकर से प्रार्थना करते हैं। उनके परिवार वाले दूल्हा दुल्हन की आने वाले जीवन की खुशियों के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हैं। इस दिन शिव जी व मां पार्वती की पूजा के बाद पवित्र अग्नि के सामने समारोह का आयोजन किया जाता है। पुजारी जी पवित्र अग्नि के सामने पूजा करते हैं दुल्हन के गहने और अन्य उपहार पवित्र अग्नि के सामने रखे जाते हैं। ईश्वर से आने वाले दंपति के सुखमय जीवन की प्रार्थना की जाती है।

दुरीबत

इस रस्म में दूल्हा दुल्हन के मामा मामी उन्हें अपने घर दावत के लिए न्योता भेजते हैं। मामा मामी दूल्हा दूल्हा दुल्हन को उपहार देते हैं व उनके साथ आए हुए अन्य रिश्तेदारों को भी उपहार दिया जाता है। रिश्तेदार दूल्हे व दूल्हे के माता-पिता के लिए उपहार लेकर आते हैं। मेहमानों का स्वागत दूध के शर्बत व कहवे से किया जाता है। मामा मामी द्वारा पारंपरिक शाकाहारी कश्मीरी भोजन की दावत दी जाती है।

कनिसरन / हल्दी की रस्म

संपूर्ण भारत में जिस तरह से हल्दी की रस्म होती है उसी तरह से कश्मीर में यह रस्म होती है। इस रस्म में दूल्हे दुल्हन को उबटन लगाया जाता है। यह उबटन चावल के आटे, दही, दूध, पानी के मिश्रण से बनाया जाता है। इस उबटन को लगाने के बाद दूल्हा-दुल्हन को स्नान कराया जाता है और नए कपड़े पहनाए जाते हैं।

बारात की तैयारी

दूल्हे के बड़े भाई और चाचा दूल्हे की पगड़ी बांधते हैं पगड़ी बांधने के बाद दूल्हे के घर की सुहागिन महिलाएं दूल्हे का चुमावन करती हैं। यह एक रस्म होती है जिसमें सुहागन स्त्रियां दूल्हे की नजर उतारतो हैं व उसके लिए शुभकामनाएं करती हैं।मंगल गान गाए जाते है। इसमें महिलाएं चावल की थाली लेकर उसमें से चावल के कुछ दाने लेकर दूल्हे के दाहिने कंधे पर पैसे व चावल छूती है। उसके बाद ये पैसे और चावल जरूरतमंद लोगों को दे दिए जाते हैं। दूल्हे के प्रस्थान से पहले दो बड़े बर्तनों में चावल और पैसे रखे जाते हैं जिन्है गरीब लोगों को दान किया जाता है। प्रस्थान से पहले दूल्हे को चावल और आटे की बनी एक रंगोली जिसे वियोग कहा जाता है उस पर खड़ा किया जाता है। प्रस्थान से पहले शंखनाद किया जाता है। शंखनाद के बाद दूल्हा गाजे-बाजे के साथ अपनी बारात लेकर दुल्हन के घर प्रस्थान कर देता है।

बारात का स्वागत

दुल्हन के घर दूल्हे का स्वागत शंखनाद के साथ होता है। दूल्हे का द्वारा चार किया जाता है और दूल्हा दुल्हन के पिता एक दूसरे को जायफल देते हैं। पंडित जी द्वार पूजा करते हैं। द्वार पूजा के बाद मंडप की पूजा की जाती है। शंखनाद के साथ ही दूल्हा मंडप में बैठता है। दुल्हन को उसके मामा विवाह स्थल तक लेकर आते हैं। दूल्हा दुल्हन के बीच में एक पर्दा होता है जिससे कि वह दूसरे को देख नहीं सकते उन दोनों के सर ढके होते हैं। दूल्हे के सर पर फूलों का सेहरा होता है और दुल्हन का सर घूंघट से ढका होता है। दूल्हा दुल्हन के सर पर मनन मल नामक एक सुनहरा मुकुट या धागा पहनाते हैं। दूल्हा दुल्हन के बीच में एक पर्दा होता है। कुछ रस्मों के बाद उन दोनों के परदे के नीचे आईना रखा जाता है। आईने में दोनों दूल्हा दुल्हन एक साथ अपने प्रतिबिंब को देखते हैं।

लग्न/ कामिलरी फेरों की रस्म

भारत के अन्य हिंदू विवाह की तरह ही कश्मीरी हिंदू विवाह सात फेरों की रस्म होती है। दुल्हन का पिता अपनी पुत्री का कन्यादान करता है। दुल्हन का पिता अपनी पुत्री का हाथ दूल्हे के हाथ में रखता है जिसे बेटी देना कहते हैं। इस रस्म को करते समय दूल्हा दुल्हन का हाथ मलमल के रेशमी कपड़े से ढका जाता है जिसे अथवास कहते हैं। फेरों के समय पंडित जी पवित्र अग्नि के सामने मंत्र पढ़ते हैं। दूल्हा दुल्हन एक रुपए के 7 सिक्कों पर अपने पैर रखते हैं और पहला फेरा पूरा करते हैं। इसी तरह से सातों फेरे संपूर्ण होते हैं। दूल्हा दुल्हन एक दूसरे को चावल खिलाते हैं। फिर दूल्हा-दुल्हन अपने बड़ों का आशीर्वाद लेते हैं। इस रस्म के बाद शाकाहारी भोजन की दावत होती है। दूल्हा दुल्हन को एक ही थाली में भोजन कराया जाता है।

पाॅश पूजा

फेरों के बाद विदाई से पहले दूल्हा दुल्हन की पाॅश पूजा होती है। जिसमें दूल्हा-दुल्हन को मंडप में बिठाया जाता है और उनके सिर को लाल कपड़े से ढका जाता है। वैदिक मंत्रों का उच्चारण किया जाता है और पुजारी उनके पारिवारिक मित्र रिश्तेदार वर वधु के चारों तरफ एकत्रित होते हैं। वैदिक मंत्रोच्चार के साथ ही साथ उन पर पुष्प वर्षा की जाती है। वर वधु को शिव व पार्वती का प्रतीक माना जाता है। पारिवारिक मित्रों, रिश्तेदारों व वधू के माता पिता के द्वारा भगवान शिव व मां पार्वती से उनके वैवाहिक जीवन के मंगल की प्रार्थना की जाती है।

विदाई समारोह

एक माता-पिता के लिए सबसे मुश्किल क्षण होता है जब उन्है अपनी बेटी को विदा करना होता है। कश्मीरी विदाई समारोह में दूल्हा-दुल्हन को लकड़ी के पटरी पर खड़ा किया जाता है। जिसे वियोग कहते हैं। घर की सबसे बड़ी स्त्री उनकी पूजा करती है। पूजन के बाद सारी सुहागन स्त्रियां वर वधु की पूजा करती है। वह बुजुर्ग स्त्री वर वधु को तीन बार मिश्री व चावल जिसे नाबाद कहा जाता है देती है। पति पत्नी को नाबाद को खाना होता है। वह वयोवृद्ध महिला उनके माथे को चूमती है। घर से बाहर जाते समय वधू अपने कंधे से एक मुट्ठी चावल अपने माता-पिता के घर की दिशा में फेंकती है। वधू प्रार्थना करती है कि उसका मायका हमेशा भरा पूरा रहे।

दूल्हा दुल्हन का स्वागत

दूल्हा दुल्हन का सागर काफी जोर-शोर व गर्मजोशी के साथ किया जाता है। दूल्हा दुल्हन को लकड़ी के बने पटरी वियोग पर खड़ा होना होता है। वहां पर उन्हें दूल्हे के घर की सबसे बुजुर्ग स्त्री नाबाद खिलाती है। दोनों के सर पर जो रेशमी मनमनमल बंधा होता है उसे दोनों के सर पर अदला-बदला किया जाता है। इस खुशी में सफेद कबूतर का जोड़ा आकाश में छोड़ा जाता है।

सात रात की रस्म

इस रस्म में दूल्हा-दुल्हन दुल्हन के घर जाते हैं। दूल्हा दुल्हन के साथ उनके परिवार के एक या एक से अधिक बच्चे होते हैं। जहां दुल्हन के माता-पिता उन सभी का स्वागत सत्कार करते हैं। भोजन कराते हैं और उन्हें नए वस्त्र उपहार में देते हैं। दूल्हा दुल्हन और उन बच्चों को वस्त्र के साथ उपहार में कुछ रुपए भी दिए जाते हैं। घर वापस आते समय दूल्हा दुल्हन उन्हीं कपड़ों को पहन कर वापस आते हैं। इसके बाद दूल्हा-दुल्हन एक बार फिर दुल्हन के घर सहस्रमंगलम की रस्म मैं वापस आते हैं। इस रस्म में दुल्हन के घर मां पार्वती की पूजा होती है। दूल्हा दुल्हन को वापसी में नए वस्त्र दिए जाते हैं।

रोथ की रस्म

इस रस्म में दुल्हन के परिवार वाले अपनी बेटी के लिए एक बड़ा और पारंपरिक मिठाई जिसे रोथ कहते हैं, भेजते हैं। इसे आप कश्मीरी केक भी कह सकते हैं। इसके साथ साथ शगुन के तौर पर कुछ कैश भेजा जाता है। दुल्हन रोथ भेजने वाले व्यक्ति के साथ अपने मामा के घर चली जाती है।

घर अचुन की रस्म

इस रस्म में दुल्हन का परिवार एक मांसाहारी भोज का आयोजन करता है। जिसमें दूल्हे के समस्त परिवार जन आमंत्रित होते हैं। इस रस्म के बाद दुल्हन अपने ससुराल चली जाती है। यह रीत एक तरह से शादी समारोह का समापन होता है कश्मीरी परिवार में दूल्हे की तरफ से नहीं बल्कि दुल्हन की तरफ से रिसेप्शन दिया जाता है। हां लेकिन अब तो रस्में बदली है। अब दूल्हे वाले भी रिसेप्शन देते हैं या फिर दुल्हन के परिवार वालों के साथ रिसेप्शन में अपना फाइनेंसियल सपोर्ट करते हैं।

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