maharashtrian wedding rituals

मराठी शादी की रस्में जो आप कभी नहीं भूल सकते, मराठी विवाह विधी, महाराष्ट्रीयन शादी,

मराठी शादी की रस्में – Marathi Wedding Rituals in Hindi

हमारा देश विविधताओं से भरा हुआ देश है। हर प्रदेश की अपनी संस्कृति है जिसमें बच्चे के जन्म से लेकर विवाह तक के संस्कारों की अपनी परंपरा है। मराठी लोग अपनी गौरवमयी संस्कृति के लिए जाने जाते हैं । महाराष्ट्र में संपन्नता के साथ सादगी अपनी संस्कृति का प्रभाव दिखाती है तो आइए जानते हैं कि महाराष्ट्र में शादी किस प्रकार होती है। 

Marathi Wedding Rituals Step by Step

लग्नाच वेदीओर/ मैचमेकिंग

महाराष्ट्र शादियों में सर्वप्रथम लड़का और लड़की के एक दूसरे को पसंद कराने से पहले परिवार वाले लड़के व लड़की की फोटो व बायोडाटा पसंद करते हैं। बायोडाटा में वर/ वधु के परिवार , उनकी शिक्षा, उनकी नौकरी, उनकी लंबाई, रंग रूप, व्यव्हार, रुचिआदि का संक्षेप में वर्णन होता है। बायोडाटा व फोटो पसंद आने पर दोनों पक्ष जन्म कुंडली का मिलान अपने पारिवारिक पंडित जी से करवाते हैं। आमतौर पर वर या वधू का चयन पंडित जी, रिश्तेदारों तथा समाज के एवं परिवार के और जान पहचान के लोगों के द्वारा ही होता है। अधिकतर पक्षों में लड़के और लड़की का परिवार किसी न किसी तरह से एक दूसरे को जानता ही है। महाराष्ट्र में शादियां अपने धर्म, जाति, व समाज में की जाती हैं। इसके लिए सब कुछ उपयुक्त होने पर ही वर वधु को आपस में मिलाया जाता है। महाराष्ट्र मेंअजनबी लोगों के साथ या दूसरे प्रदेश के लोगों के साथ विवाह का चलन नहीं है लेकिन पाश्चात्यीकरण के फलस्वरूप लव मैरिज होने लगी है तो कहीं भी शादी हो सकती है।

Marathi wedding rituals
Marathi wedding rituals

मुख्यतः पारिवारिक पंडित जी लड़के लड़की की जोड़ी मिलाने में एक मुख्य भूमिका निभाते है। जब लड़का लड़की के फोटो व बायोडाटा आपस में पसंद आ जाते हैं तो फिर कुंडली मिलाने का सिलसिला शुरू होता है। मिलान होने पर उनके परिवार वाले आपस में मिलते हैं और सबसे अंत में लड़के और लड़की को एक दूसरे से मिलाया जाता है। जब लड़के लड़की एक दूसरे को पसंद कर लेते हैं तो परिवार के बड़े एक दूसरे के हाथों में व उन दोनों के हाथों में शगुन रखते हैं। जिसमें कुछ पैसे व फल व मिष्ठान होता है। इस रस्म को उत्तर भारत में वरीक्षा कहा जाता है जिसके बाद सभी को आधिकारिक घोषणा कर दी जाती है वर-वधू की आपसी संबंध के बारे में। लड़का और लड़की के एक दूसरे को पसंद आ जाने के बाद पंडित जी सगाई व शादी का एक शुभ मुहूर्त निकालते हैं।

साकरपुडा

महाराष्ट्र में साखरपुडा की रस्म होती है जिसे अन्य जगहों पर सगाई भी कहते हैं। उत्तरभारत में इसे गोद भराई कहा जाता है। इस समय वर पक्ष वाले वधू के लिए श्रृंगार का सामान, वस्त्र, मिष्ठान, फल, मेवे लाते हैं वधु को एक चौकी पर बिठाया जाता है और उसको बिंदी व कुमकुम लगाया जाता है। उसकी गोद में सुहाग पिटारी डाली जाती है। फल मेवे और रुपए भी रखे जाते हैं। इस रस्म को ओली भरना भी कहा जाता है या गोद भराई भी कहा जाता है।

परिवार के जितने लोग होते हैं सभी वधू की गोद में कुछ ना कुछ अवश्य डालते हैं। वर की मां कन्या की गोद में एक शंकू के आकार का गिफ्ट देती है। जिसे साकरपूडा कहा जाता है। जिसमें सुहाग पिटारी का सारा समान होता है। दूसरी तरफ वधू पक्ष के लोग वर का का तिलक करते हैं। उसकी गोद में फल में भी और कुछ दक्षिणा डालते हैं कुछ लोग स्वर्ण आभूषण भी डालते हैं। साकरपूडा की रस्म में ही वर व कन्या एक दूसरे को अंगूठी पहनाते हैं। पहले यह रस्म बिना किसी दिखावे के होती थी लेकिन आप धीरे-धीरे यह वैभव व संपन्नता का प्रतीक होती जा रही है और जिसे सभी काफी धूमधाम से मनाना पसंद करते हैं।

मुहूर्त करणे

जब पंडित जी शादी का मुहूर्त निकाल लेते हैं तो विवाह की तैयारियां वर, वधु पक्ष के दोनों लोग करने लगते हैं। वर वधू पक्ष के लोग अपने अपने घरों में अपने अपने कुलदेवता व पितरों की की पूजा करने के बाद अपने अनुष्ठान शुरू करते हैं। एक शुभ नक्षत्र में दूल्हे व दुल्हन की मां पांच विवाहित महिलाओं को हल्दी उबटन बनाने के लिए आमंत्रित करती है। इसमें घर में ही हल्दी पीसी जाती है इस हल्दी का उपयोग विवाह के समय हल्दी लगाने में किया जाता है। इस हल्दी को ओखला मुसल में गाने गाते हुए पीसा जाता है। बाद में इन महिलाओं का मुंह मीठा करा कर ही इन्हें वापस भेजा जाता है।

मराठी विवाह में पापड़ बेलना भी एक रस्म होती है। इसमें परिवार की सभी महिलाएं मिलकर पापड़ बेलती है और गाना बजाना करती हैं। इन रस्मों के बाद विधि-विधान पूर्वक शादी की तैयारियां शुरू हो जाती है। जिसमें शादी के कपड़े, गहने, बर्तन की खरीदारी के साथ-साथ परिवार वालों को लेनदेन की भी तैयारियां होती हैं। महाराष्ट्र में दहेज नहीं लिया जाता लेकिन परिवार वाले अपनी खुशी के साथ अपनी सामर्थ्य अनुसार बेटी व बेटे के परिवार को उपहार अवश्य देते हैं।

विवाह का निमंत्रण पत्र

मुहूर्त निकलने के पश्चात शादी के निमंत्रण पत्र छपना शुरू हो जाते हैं। इसमें वैवाहिक रस्मों के समय , वैन्यू और दिन के विषय में विस्तार पूर्वक लिखा जाता है। अधिकतर निमंत्रण पत्रों में परिवार के सदस्यों के नाम भी वर वधु के साथ लिखे जाते हैं। सबसे पहला निमंत्रण पत्र भगवान गणेश जी को दिया जाता है। अपने कुल देवता, ग्राम देवता व पितरों को आह्वान किया जाता है उनके आशीर्वाद के लिए विवाह को निर्विघ्न संपन्न कराने के लिए।

केलवन

यह एक ऐसी रस्म है जिसमें वर वधु के परिवार वाले एक दूसरे से मेलजोल बढ़ाते हैं और एक दूसरे के परिवार के बारे में जानते हैं। इस रस्म में वर वधु के परिवार वाले अपने करीबी परिवार वालों और रिश्तेदारों के साथ एक दूसरे को अपने अपने घरों पर भोजन के लिए आमंत्रित करते हैं। इस रस्म में परिवार वाले एक दूसरे के साथ मिलकर अपने ग्राम देवता, कुलदेवता व ब्रह्म देवता की पूजा करते हैं। अधिकतर यह अनुष्ठान दोपहर में किए जाते हैं। पूजा व धार्मिक अनुष्ठानों के बाद सात्विक भोजन ग्रहण किया जाता है।

हालाद चड़वाने

इस रस्म में मुहूर्तम के समय जो हल्दी वधू व वर पक्ष की महिलाओं ने बनाई थी। उस हल्दी को लगाया जाता है। पंडित जी हल्दी व तेल लगाने के दिन निकालते हैं जब मुहूर्त निकाला जाता है तभी हल्दी और तेल की रस्म के भी मुहूर्त निकाल दिए जाते हैं। यह रस्म 3 दिन से लेकर 7 दिन तक चलती है। कुछ लोगों को तीन तो कुछ लोगों को सात तेल व हल्दी लगाई जाती है। लेकिन आजकल समय अभाव के कारण 1 दिन की में ही हल्दी की रस्म अदा कर ली जाती है। सबसे पहले हल्दी वर को उसकी मां, दादी और बुआएं और अन्य घर की सुहागिन स्त्रियां लगाती हैं। मराठी शादी में आम के पत्तों से हल्दी लगाई जाती है हल्दी सबसे पहले सिर, कंधे, हाथ और पैरों पर लगाई जाती है। अगर वधू का घर वर के घर के पास है तो वही हल्दी वधू के लिए भेजी जाती है। जिसे पहले वधू पक्ष की सुहागन स्त्रियां मां, दादी, बुआ, भाभी आदि वधु को लगाती है।

गणपति पूजा

सर्वप्रथम किसी भी पूजा विधि या विधान को करने से पहले गणपति की पूजा करने का विधान है। महाराष्ट्र में गणपति की पूजा विशेष रूप से होती है। हिन्दू शादी की रस्म में सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा होना तो अति आवश्यक है। भगवान गणेश विघ्न विनाशक है और सिद्धिविनायक है। विवाह में आने वाली अड़चनों को दूर करने के लिए और विवाह को निर्विघ्न संपन्न करने के लिए भगवान गणेश की पूजा की जाती है। वर-वधू पक्ष के दोनों लोग अपने अपने घरों में गणपति जी की पूजा करते हैं जिससे कि वर वधु का आने वाला जीवन सुखमय हो।

वर वधु की महाराष्ट्रीयन विवाह की पोशाक

वर विवाह के समय सफेद रंग का कुर्ता पहनता है जिसे वह धोती के साथ पहनना पसंद करता है। जिसके ऊपर सुनहरे या लाल रंग का दुशाला ओढ़ा जाता है। सर पर महाराष्ट्रीयन शैली में फेटा या पगड़ी बांधी जाती है। कुछ जगह सफेद गांधी टोपी भी दूल्हा पहनता है।

दुल्हन इस समय पैठणी साड़ी पहनती है। जोकि एक विशिष्ट मराठी धोती होती है। यह रंगीन रेशम की साड़ी होती है इसमें पीले, नारंगी बैंगनी, हरे रंगों का संयोजन होता है मराठी शादी में 6 गज की पैठणी या 9 गज की नवारी पहनी जाती है। वधू हरे कांच की चूड़ियां, मंगलसूत्र पहनती है ।।महाराष्ट्र में लंबा व भारी पारंपरिक हार अत्यंत प्रचलन में है इसके अतिरिक्त महाराष्ट्रीयन बाजूबंद चंद्रमा के आकार की बिंदी,ठुसी और महाराष्ट्रीयन नथ दुल्हन के परिधान की रौनक बढ़ा देते हैं।

गुरीहार पूजा

शादी वाले दिन दुल्हन अपने मामा के यहां से आए हुए वस्त्र को धारण करती है। अधिकतर यह पीली धोती होती है जोकि उसके मामा उसके लिए लाते हैं। मामा के यहां से ही लड़की की नथनी आती है। दुल्हन अपना संपूर्ण श्रंगार करने के बाद मां पार्वती की पूजा करती है। कहीं-कहीं मां पार्वती को हल्दी का बनाया जाता है तो कहीं मां पार्वती की चांदी की मूर्ति की पूजा की जाती है। वधू मां पार्वती की पूजा कर मां से अपने आने वाले जीवन की खुशियों की प्रार्थना करती है जिससे कि उसका आने वाला जीवन सौभाग्यमय हो। वधु के मामा उसे चावल देते हैं जिन्हें वह मां पार्वती को अर्पण करती है। मां पार्वती ही मां अन्नपूर्णा है वधू उनकी अर्चना कर उनसे धनधान्य की प्रार्थना करती है।

देव देवक पूजा

विवाह स्थल पर पंडित जी के द्वारा सर्वप्रथम घर के कुल देवता ग्राम देवता व नवग्रहों का आह्वान किया जाता है। सभी देवी देवताओं को विवाह की रस्म में आमंत्रित किया जाता है और उनसे विवाह को निर्विघ्न संपन्न कराने की प्रार्थना की जाती है। साथ ही साथ उनसे वर वधु को आशीर्वाद देने की और उनसे उनका आगामी जीवन मंगलमय हो इसकी प्रार्थना की जाती है।

पुण्य वचन

दुल्हन के माता-पिता उसे मंडप में ले जाते हैं और अपने बड़ों से आशीर्वाद देने के लिए कहते हैं। दुल्हन जब मंडप में पहुंचती है तो सभी बड़े उसे आशीर्वाद देते हैं और वह मंडप में अपनी जगह पर बैठ जाती है।

सीमन पूजा

इस परंपरा को उत्तर भारत में द्वाराचार कहते हैं। इसमें जब बारात वधु के घर के दरवाजे पर आ जाती है तो बारात का स्वागत किया जाता है। वधू की मां वर के पैर धोती है। उनका तिलक करती है, आरती करती है और उनका मुंह मीठा करती है। हिंदू धर्म में वर वधु को विवाह के समय नारायण व लक्ष्मी जी का स्वरूप माना जाता है इसीलिए इस समय उनके बड़े भी उनके चरण स्पर्श करते हैं।

अंतरपट

वर वधु को मंडप में बैठा दिया जाता है और उस समय उन दोनों के मध्य में एक कपड़े को रखा जाता है जिससे कि वही दूसरे को देख ना सके। दूल्हा दुल्हन को एक दूसरे के विपरीत बैठाया जाता है। पंडित मंगलाष्टक गाते हैं व पवित्र मंत्रों का उच्चारण करते हैं तब उस अंतरपट को हटा दिया जाता है। वर-वधू एक दूसरे को जय माल पहनाते हैं सभी परिवार जनों वर वधु को विष्णु और लक्ष्मी जी की छवि मान ने अक्षत (साबुत चावल) अर्पण करते हैं।

लाजा होमा

इस रस्म में अन्य हिंदू रीति-रिवाजों की तरह ही यज्ञ कुंड में पवित्र अग्नि प्रज्वलित की जाती है। सर्वप्रथम पंडित जी 3 मंत्र बोलते हैं उसके बाद वर उन मंत्रों को दोहराता है, उसके पश्चात वधू द्वारा वो मंत्र दोहराएं जाते हैं। चौथा मंत्र पंडित जी दुल्हन को उपचारित करने के लिए कहते हैं। चौथा मंत्र दुल्हन के द्वारा धीमे स्वर में बोला जाता है। दुल्हन मंच बोलने के साथ-साथ अग्नि में अन्न डालती जाती है। दुल्हन की माता-पिता दूल्हा दुल्हन के हाथों में हल्दी का कलावा बांधते हैं वर वधू के गले मे मंगलसूत्र पहनाता है। वर वधु के मांग में तीन बार या पांच बार सिंदूर लगाता है।

कन्यादान

कन्यादान की रस्म में वधू का पिता अपनी पुत्री का हाथ वर के हाथ में रखता है। वधू का पिता अपनी पुत्री का ध्यान रखने के लिए वर से कहता है और अपनी पुत्री को अपने घर का मान बढ़ाने का आशीर्वाद देता है। वर इस समय कन्या के पिता को कन्या का ध्यान रखने के लिए आश्वस्त करता है।

सप्तपदी

हिंदू रीति-रिवाजों की तरह ही मराठी विवाह में भी सात फेरे लिए जाते हैं जिसमें से शुरू के फेरों में वर कन्या के आगे चलता है उसके बाद कन्या वर के आगे चलती है। हर फेरा एक संकल्प का प्रतीक होता है जिसे कि वर एवं वधू पंडित जी के बाद दोहराते जाते हैं।

संकल्प

सात फेरों के बाद वर वधु एक दूसरे को आजीवन एक दूसरे के साथ रहने का वचन देते हैं व एक दूसरे का साथ निभाने का संकल्प लेते हैं।

कर्म समाप्ति

फेरों के पश्चात वर वधु लक्ष्मी पूजन करते हैं। इस समय वधु के ससुराल वाले उसे एक नया नाम देते हैं । विवाह की रस्म के पश्चात वधू का भाई वर के कानों को मोड़ते हुए उसे वैवाहिक कर्तव्यों की याद दिलाते हुए मजाक करते हुए सचेत करता है। अंत में वर वधु अपने बड़ों का आशीर्वाद लेते हैं।

वरत

विदाई की रस्म को मराठी में वरत कहते हैं। इसमें दुल्हन को उसके माता पिता विदाई देते हैं। दूल्हे को दुल्हन की गौरी पूजा वाली पार्वती मां की मूर्ति देव स्वरूप दी जाती है। इस रस्म में वधू की मां उसकी गोद भराई करती है और उसकी गोद में खोएचा डालती हैं‌। उसके बादर दुल्हन से परछावन कराया जाता है। जो चावल दुल्हन पीछे अपनी मां के आंचल में फैकती है जिसे उसकी मां संभाल कर रखती है। यह इस बात का प्रतीक है कि मां अपनी बेटी की सुख समृद्धि के लिए उसकी गोद भराई करती है और बेटी अपने मायके की संपन्नता के लिए अनाज पीछे वारती है जिससे कि उसका मायका उसके जाने के बाद भी संपन्न रहें।

Mundavalya Ornament
Mundavalya Ornament

गृह प्रवेश

वर पक्ष वधु को अपने घर में लाता है दूल्हे की मां दुल्हन का आरती से स्वागत करती है उन दोनों के दूध और जल से 7 जुलाई जाते हैं । प्रवेश द्वार पर चावल से भरा हुआ कलश रखा जाता है जिस पर वधू को धीरे से पैर मार कर कलर्स को नीचे गिराना होता है। उसके बाद वधू अपना दाहिना पैर अंदर रखकर प्रवेश करती है वधू के अंदर प्रवेश करने के पश्चात वर उसके पीछे पीछे घर में प्रवेश करता है।

स्वागत समारोह

वर पक्ष के द्वारा वधु के स्वागत के लिए एक समारोह का आयोजन किया जाता है। जिसमें दुल्हन के परिवार वालों को भी आमंत्रित किया जाता है। दूल्हा दुल्हन को सभी मेहमान आशीर्वाद देते हैं। इस विवाह में कन्या अपने ससुराल पक्ष की तरफ से मिले हुए वस्त्र धारण करती है और वर वधू पक्ष की तरफ से मिले हुए कपड़ों को पहनता है।

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