The indian prayer prepraing the worship items for thread ceremony (puja, pooja) of indian wedding event with Ganesha statue (Hindu god of wisdom)

क्यों होता है कुआँ पूजन?

कुआँ पूजन एक ऐसी रस्म, एक ऐसी परम्परा जो अब धीरे धीरे लुप्त होती जा रही है। आप सोचेंगे कुआँ क्यों पूजना भाई? तो आप बताइए चाँद, सूरज, बरगद, पीपल क्यों पूजते है? क्योंकि ये सब प्रकृति और मानव को आपस मे जोड़ते है। मानव के हृदय में प्रकृति के लिए प्रेम, आदर का भाव जगाना, क्योंकि प्रकृति और मानव दोनो ही एक दूसरे के बिना अधूरे है। कुआँ जिसमे कभी शीतल जल की उपस्थिति लाखो लोगो की प्यास बुझाती थी। कुँए में जल ठहरा रहता है फिर भी शुद्ध रहता है, है ना ये हैरानी की बात। यही बात कुँए को खास बनाती है। आज कुँए नही बचे, तो लोग रस्मो को बोरिंग या हैंड पंप के पास निबटाते है।[/vc_column_text][vc_custom_heading text=”कुआँ पूजन की ऐतिहासिकता” font_container=”tag:h2।text_align:left।color:%23ff3399″]मान्यता है कि कृष्ण जन्म के ग्यारहवें दिन माँ यशोदा ने जलवा पूजा की थी। इस दिन को डोल ग्यारस के रूप में भी मनाते है। सोलह संस्कारो की शुरुआत इसके बाद ही होती है, जलवा पूजन अर्थात जल पूजन को ही कुआँ पूजन कहते हैं।[/vc_column_text][vc_custom_heading text=”कब किया जाता है कुआँ पूजन” font_container=”tag:h2।text_align:left।color:%23ff3399″]कुआँ पूजन दो मौकों पर किया जाता है। जब लड़का बारात लेकर निकलता है तब घुड़चढ़ी होती है, घुड़चढ़ी के बाद कुआँ पूजन करके लड़का वहीं से बारात लेकर निकल जाता है। वापस घर नही जाता। कुआँ पूजन पुत्र के पैदा होने पर भी किया जाने लगा है, आजकल के नए युग मे लोग पुत्री के पैदा होने पर भी कुआँ पूजन करने लगे है।[/vc_column_text][vc_custom_heading text=”विवाह में कुआँ पूजन कैसे किया जाता है” font_container=”tag:h2।text_align:left।color:%23ff3399″]विवाह के समय घुड़चढ़ी के बाद पास के किसी मंदिर में लड़का और लड़के की माँ पूजा करते है। एक सूप में 2 मिट्टी के सकोरे, सींक, चावल, हल्दी, बताशे रखे जाते है। माँ चावल, हल्दी और बताशे से कुँए को पूजती है, उसके बाद दूल्हा कुँए के चारो तरफ सात चक्कर लगाता है मतलब सात परिक्रमा करता है। हर परिक्रमा के एक सींक उठाकर कुँए में डालता है। इसलिए सूप में सात सींक जरूर रखे। उसके बाद माँ नाराज होने का नाटक करती है और कुँए में कूदने की धमकी देता है। दूल्हा हंसते हुए माँ को मनाता है और कहता है माँ गुस्सा मत हो तेरे लिए लाल बहू लाऊंगा। उसके बाद दूल्हा तेल की कटोरी में अपना चेहरा देख बिना पीछे मुड़े बारात लेकर निकल जाता हैं।[/vc_column_text][vc_custom_heading text=”पुत्र प्राप्ति पर कुआँ पूजन” font_container=”tag:h2।text_align:left।color:%23ff3399″]पुत्र प्राप्ति पर कुआँ पूजन किसी परिवार में जच्चा करती है और किसी परिवार में जच्चा की जेठानी। इसमे जच्चा और बच्चे को गुनगुने पानी से नहलाकर नए कपड़े पहनाए जाते है। बच्चा बुआ के यहाँ से आए हुए कपड़े पहनता है, जच्चा पीले रंग की साड़ी पहनती है। इस रस्म में एक थाली में पान, सुपारी, चावल, कुमकुम, आटा, बताशे, गुड़, अनाज, फल लेकर कोई भी महिला जच्चा के साथ, या जच्चा की जेठानी के साथ चलती है। जच्चा या जच्चा की जेठानी के सर पर खाली कलश होता है, जिसमे चाकू रखा जाता है। उसी थाली में पुत्र होने पर जो गोबर से बने सतीये पूजे गए थे वो भी रखे जाते है।
                                                                                                                                                                                                                                बहुत सी स्त्रियां मंगलगीत या जच्चा गाती हुई साथ मे जाती है। कुँए(आजकल बोरिंग या हैंडपम्प) पर पहुँचने पर आटे से स्वस्तिक बनाया जाता है। थाली में रखी सभी वस्तुओं का भोग लगाया जाता है। उसके बाद जच्चा या जेठानी प्राथर्ना करती है कि जैसे कुँए में पानी कभी कम नही होता माँ के स्तनों से दूध भी कभी कम ना हो। उसके बाद गोबर से बने स्वस्तिक को जल डालकर हाथों की हथेलियों से खूब रगड़ रगड़ कर घिसा जाता है। तब तक घिसते है जब तक वो पानी मे घुल कर बह ना जाए। उसके बाद खाली कलश में जल भरकर सारी स्त्रियां घर वापस आती है। ऐसा बच्चे की सुरक्षा के लिए किया जाता है, माना जाता है की कोई भी महिला इन सतियो का थोड़ा भी हिस्सा चुराकर टोटका कर सकती है, जो बच्चे को नुकसान पहुँचा सकता है।
                                                                                                                                                                                                                                  एक बात जो यहाँ बताना बहुत जरूरी है वो ये की जिन परिवारों में जच्चा कुआँ पूजन के लिए नही जाती वहाँ पर जच्चा को एक पीढ़े घर के आँगन में बिठाया जाता है। जेठानी या जच्चा जब दरवाजे पर आती है तो जच्चा की ननद या देवर उस कलश को सिर से उतरती है। ननद या देवर को नेग दिया जाता है। जिस पीढ़े पर जच्चा बैठी होती है, उसी पीढ़े पर बैठकर जेठानी पूजा करती है, फिर जो जल कलश में लेकर आती उसी से पहली बार तिहाला(जच्चा के लिए बनने वाला आटे का हलवा ) बनता है। ये हलवा सबसे पहले जेठानी खाती है, उसके बाद ही जच्चा को दिया जाता है। जेठानी को नेग और कपड़े दिए जाते है। उसके बाद बच्चे के दादा की गोद मे बच्चे को दिया जाता है। दादा को नेग देने के बाद ही बच्चे को माँ की गोद में दिया जाता है और कुआँ पूजन की रस्म समाप्त होती है।[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row]

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