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 क्या एक ही गोत्र मे विवाह कर सकते है? 

 हिंदू धर्म मे एक ही गोत्र मे शादी नही कर सकते इसके दो कारण है

1-समाजिक कारण

हिंदू धर्म मे एक ही गोत्र मे शादी करने पर  प्रतिबंध लगाया गया है। गोत्र दरअसल हमारा वंश या कुल होता है। जो आपको पीढी दर पीढी जोड़ता है। हिंदू धर्म मे आठ प्रकार के गोत्र बताये गऐ है। विश्वामित्र, जग्नि, भारद्वाज, गौतम,अत्रि,वशिष्ठ ,कश्यप और इन सप्तऋषियो और आठवे ऋषि अगस्त्य की संतानो को गोत्र कहते है।ऐसा माना जाता है कि अगर लड़का, लड़की एक ही गोत्र मे जन्मे है तो उनके बीच पारिवारिक रिश्ता माना जाता है,और आपस मे भाई बहन का सम्बन्ध हो जाता है। जिस वजह से शादी करने पर विरोध किया गया है। हिंदू धर्म मे एक मनुष्य को तीन गोत्र छोड़कर विवाह करना चाहिए – एक स्वयं का दूसरा माँ का और तीसरा दादी इन तीनो गोत्र मे हम विवाह नही कर सकते।कही- कही नानी का भी गोत्र लिया जाता है। अगर लड़का, लड़की की जाती एक और गोत्र अलग हो तो विवाह हो सकता है।
शायद आपने भी कभी ना कभी अपने जीवन में जरूर सुना होगा कि समान गोत्र में शादी नहीं करनी चाहिए। आज की पीढी के बच्चे समझते हैं कि माता-पिता सिर्फ ये चीज मर्यादा को कायम रखने के लिए कर रहे हैं। जबकि सच कुछ और ही है। हालांकि कई चीजें हमारे समाज में ऐसी होती हैं जिनका कोई साइंटिफिक रीजन नहीं होता है। जबकि कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिनका भले ही हमारे माता-पिता और बड़े बुजुर्गों के पास कोई साइंटिफिक रीजन ना हो उसके पीछे विज्ञान का हाथ जरूर होता है। ऐसा ही एक रिवाज है समान गोत्र में शादी ना करना। अगर इसी चीज को हम विज्ञान की नजर से देखेंगे तो पाएंगे कि ये कारण वाकई है।

2-वैज्ञानिक कारण

हमारी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एक ही गोत्र या एक ही कुल में विवाह करना पूरी तरह प्रतिबंधित किया गया है। विज्ञान मानता है कि एक ही गोत्र में शादी करने का सीधा असर संतान पर पड़ता है। एक ही गोत्र या कुल में विवाह होने पर दंपत्ति की संतान अनुवांशिक दोषो के साथ जनम लेती है ऐसे दंपत्तियों की संतान में एक सी विचारधारा, एक जैसी पसंद और एक जैसे व्यवहार देखने को मिलते है।और कोई नयापन नहीं होता। साथ ही ऐसे बच्चों में रचनात्मकता का अभाव होता है। कई शोध में भी इस बात का खुलासा हो चुका है कि एक ही गोत्र में शादी करने पर अधिकांश दंपत्तियों की संतान मानसिक रूप से विकलांग, नकरात्मक सोच वाले, अपंगता और अन्य गंभीर रोगों के साथ जन्म ले सकती है। इसलिए एक ही गोत्र में शादी नही करना चाहिए।

अन्य गोत्र मे विवाह करने के फायदे

विज्ञान कहता है कि स्त्री-पुरुष के गोत्र में जितनी अधिक दूरी होगी संतान उतनी ही स्वस्थ, प्रतिभाशाली और गुणी पैदा होगी। उनमें आनुवंशिक रोग होने की संभावनाएं कम से कम होती हैं। उनके गुणसूत्र बहुत मजबूत होते हैं और वे जीवन-संघर्ष में सपरिस्थितियों का दृढ़ता के साथ मुकाबला करते हैं। इन कारणों से शास्‍त्रों में एक ही गोत्र में विवाह करने की मनाही है। कहा जाता है कि वर और कन्‍या के एक ही गोत्र में विवाह करने से उनकी संतान स्‍वस्‍थ नहीं होती है एवं उसे कोई ना कोई कष्‍ट झेलना ही पड़ता है। इसके अलावा विवाह में गुण मिलान भी किया जाता है। ज्‍योतिष केअनुसार गुण मिलान के आधार पर ही वर कन्‍या का वैवाहिक जीवन निर्भर करता है। अगर यह मिलान उचित होता है तो दंपत्ति भी खुश रहता है।
पर आज का समाज इन सब बातो का खंडन करता है। आजकल लोग कुंडली मिलान भी नही करा रहे है बस। घर,  बर अच्छा हो विवाह कर देते है। चाहे आप समाजिक नजरिये से देखे या वैज्ञानिक किसी भी नजरिये से एक ही गोत्र मे विवाह करना वर्जित बताया गया है। पर मेडिकल साइंस कुछ और ही कहती है।

एक गोत्र मे शादी हो सकती है-(मेडिकल साइंस) 

अगर रिश्ता निकालने बैठे हम तो पत्नी, नानी निकलेगी। बात दादी-नानी की किस्सागोई और हल्के-फुल्के ह्यूमर से ज्यादा कुछ नजर नहीं आती, लेकिन जब इसे एक तथ्य के साथ जोड़ देते है। तो इसके कुछ खास मायने जरूर निकलते हैं। तथ्य यह कि दुनिया में कोई शख्स पचास वें कजंस से ज्यादा दूर के रिश्ते में नहीं हो सकते। दोनों बातों को मिलाकर ऐसे भी कह सकते हैं कि दुनिया में जो भी शादीशुदा कपल्स हैं, उनके बीच पहले से कोई न कोई रिश्ता जरूर होगा। बात में अगर थोड़ी भी सच्चाई है, तो यह सदियों से चली आ रही उन मान्यताओं के लिए एक चुनौती है, जिन्हें आधार बनाकर खाप पंचायतें एक ही गोत्र में शादी करने वाले जोड़ों को मौत का फरमान सुनाती आ रही हैं। जाहिर है, अगर रिश्ता पहले से ही कायम है तो फिर गोत्र का बवाल मचाकर शादी के बंधन से ऐतराज क्यों?
जो खाप पंचायतें और लोग एक ही गोत्र में शादी होने वाली शादियों का विरोध कर रहे हैं, उनके तमाम तर्कों में से एक महत्वपूर्ण तर्क यह भी होता है कि ऐसी शादियों के बाद पैदा होने वाले बच्चों में जनम के वक्त होने वाली बीमारियां होने की आशंका बहुत ज्यादा बढ़ जाती है, लेकिन मेडिकल साइंस इस तर्क को पूरी तरह नकार देता है। अगर लोग सगोत्र शादियों का विरोध सामाजिक ताने-बाने को बचाए रखने की आड़ में कर रहे हैं, तो यह एक अलग मुद्दा हो सकता है, लेकिन अगर उनके विरोध का आधार यह है कि एक ही गोत्र में होने वाली शादियों के बाद पैदा होने वाले बच्चों में बर्थ डिफेक्ट्स की आशंका ज्यादा होती है, तो वे रिश्तेदारी और गोत्र के बीच के अंतर को नहीं समझ रहे हैं।
दरअसल, हमें नातेदारी में होने वाली शादियों और गोत्र शादियों के अंतर को समझना होगा। यानी अगर पहली जेनरेशन के चचेरे-तहेरे, मौसेरे, ममेरे-फुफेरे भाई-बहन की शादी हो जाए तो उनसे पैदा होने वाली संतान में कुछ बर्थ डिफेक्ट्स होने की आशंका सामान्य कपल्स के बच्चों के मुकाबले दोगुनी हो सकती है। इसकी वजह यह है कि उनके पुरूखो के जींस कहीं न कहीं एक जैसे होते हैं। ऐसे कपल्स के बच्चों को हीमोफीलिया, थैलीसीमिया, सफेद दाग जैसी कई जन्मजात बीमारियों के होने की आशंका बढ़ जाती है।’
पहले  इस मामले में यह पता लगाना जरूरी है कि गोत्र बना कैसे? जो जोड़ा शादी करना चाहता है, उसके कॉमन पूर्वज कौन हैं? फिर देखिए कि वे कॉमन पूर्वज कितनी जेनरेशन पहले के हैं? अगर यह गैप तीन जेनरेशन से ज्यादा का है, तो फिर ऐसी शादियों के बाद पैदा होने वाले बच्चों में बर्थ डिफेक्ट्स की आशंका खत्म हो जाती है। तीन पीढियों के बाद समस्या पैदा करने वाले जींस डायल्यूट हो जाते हैं।’
ऊपर जिन बीमारियों का जिक्र किया गया है, उनकी बढ़ी हुई आशंका सिर्फ फर्स्ट कजंस (सगे चचेरे-तहेरे, मौसेरे और ममेरे फुफेरे भाई बहन) के बच्चों में ही ज्यादा नजर आती है। जैसे-जैसे पीढ़ियों का अंतर बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे जन्म के वक्त की उन बीमारियों के होने की आशंका भी कम होती जाती है। पिता की तरफ से पांचवीं और माता की तरफ से तीसरी पीढ़ी के बाद शादी हो तो बच्चो मे ऐसी आशंकाऐ बिल्कुल खत्म हो जाती है। ऐसी स्थिति में एक ही गोत्र के होने के बावजूद किसी कपल के बच्चों को बर्थ डिफेक्ट्स होने की आशंका उतनी ही होगी, जितनी कि अलग-अलग गोत्र के कपल्स के बच्चों में। हिंदू मैरिज एक्ट भी कुछ अपवादों को छोड़कर सिर्फ कुछ पीढ़ियों के अंदर होने वाली शादियों को ही रोकता है, एक ही गोत्र की शादियों को नहीं। 

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