तेल-बान की रस्म
तेल-बान दुल्हन पक्ष की पूर्व-शादी की एक रस्म है।शादी के दिन दुल्हन के अपने लुक की तैयारी तेल-बान की रस्म से शुरू करती है। यह शुद्ध पारंपरिक तरीका है दुल्हन की सुंदरता लाने का। तेल-बान की रस्म में हल्दी का पेस्ट या हलदी उबटन का इस्तेमाल किया जाता है और शादी के सात दिन पहले से दुल्हन की त्वचा पर लगाया जाता है। दुल्हन को लकड़ी के एक स्टूल पर बिठाया जाता है जिसे चौकी भी कहा जाता है और दुल्हन के तत्काल परिवार की सभी महिलाएँ और दुल्हन की सहेलियाँ दुल्हन को हल्दी उबटन लगाती हैं और पारंपरिक गीत गाती हैं।
आज के समय में तेल-बान की रस्म भिन्न-भिन्न तरीको से होती है, कुछ लोग इसे शादी से एक दिन पहले करते हैं और कुछ इसे कस्टम के रूप में केवल एक घंटे के लिए करते हैं। आजकल यह रस्म आमतौर पर शादी के दिन होती है, और अधिक परंपरागत परिवारों में, शादी के समय के कुछ दिनों के लिए होती है।
तेल-बान की रस्म में, दोनों तरफ की महिलाएं आगामी शादी के लिए दूल्हा और दुल्हन (प्रत्येक संबंधित घर में) को तैयार करती हैं। इस रस्म में, दूल्हे और दुल्हन के चेहरे, बांहों और पैरों पर सरसों का तेल, ताजे दूध के दही, मेंहदी और हल्दी से बना पेस्ट लगाया जाता है। तेल-बान के लिए सभी सामग्रियों को अलग-अलग मिट्टी के बने कटोरे में रखा जाता है, एक प्लेट में एक साथ रखा जाता है। सामग्री घास से बने ब्रश से लगाई जाती है।
तेलबान की रीति हमारे शृंगार से प्रेरित हैl ऊबटन हमारे शरीर से मैल उतार कर कोमलता प्रदान करता हैl सिर में डाला गया तेल बालो को पोषण देता हैl लेकिन आजकल आधुनिक प्रसादनो की वजह से ये सब ग़ायब होता जा रहा हैl प्रथा के अनुसार रातीजगा के अगले दिन सुबह तेलबान की रस्म निभाई जाती हैl कन्या और उसकी शादी शुदा बहन या बुआ थापे की धोक लगाने तक व्रत रखती है। चोक साफ़ करके उस पर पटा या चोकी रखकर और फिर कन्या को उस पर बिठाकर साथ सुहागन कन्या के तेल चढ़ाया जाता है।
बिंदायक के रूप में बग़ल में एक छोटा लड़का बिठाया जाता है। किसी परिवार में कन्या के दादा ,ताऊ,पिता, आदि भी तेल चढ़ाने की रसम पूरी करते है । तेल चढ़ाते समय दूँब से रोली ,मेहंदी, दही, और तेल को छुआ के पाँव घुटना, हाथ,कन्धा और सिर तक सात बार दोनों हाथो से सुहागन द्वारा चढ़ाया जाता ह।इस विधि को तेल चढ़ाना कहते है।
वेसे तो तेल ग़ौर पूजाएँ से पहले उतारा है। लेकिन समय के अभाव के होते हुए लोग उसी समय ही तेल उतारने की रस्म को पूरी कर देते है। तेल चढ़ाने के बाद झोल की रस्म होतीं है। इसमें सात सुहागन कन्या के सिर पर दही लगाती है। करुआ से दही वाला जल पिता सात बार झोल के रूप डालता है और माता सिर मसलती है।
माँ सात बार टोली लगाती है।साथ लड़कियाँ भी ऊबटन लगाती है। बाद में भाभी,चाची लड़की के शरीर से ऊबटन उतारतीं है। उसके बाद कन्या नहाने जाती है। नहाने के बाद लड़की को पाटे पेर खंडा करके चंददेवा रखा जाता है और माँ बहन तिलक कर आरती करती है। अपने आँचल से चार बार छूती है। मामा चाचा भाई शगुन देके उसे गोदी में उठाकर उतारते है।
उसके बाद थापें के आगे मूँग चावल से धोक लगाई जाती है। बाँए हाथ और पाँव में कंगना डोरी बांधी जाती है। सात लड़कियाँ को मिठाई,साबुत धनिया दिया जाता है। बाद में कन्या भी मीठा पूड़ा खाके अपना व्रत खोलती है। पूरे कुटुम्ब को खाना खिलाया जाता है।
भात न्योतना की रस्म
भात न्योतना की रस्म प्रे वेडिंग सेरेमनीज में से एक हैं। वैसे तो शादी की सारी रस्मे खास होती है पर भात की रसम की खासयित कुछ अलग ही है। भारतीय शादियों में, दुल्हन के मामा और मामी की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती हैं। इसलिए पुजारी के साथ परामर्श करने के बाद एक शुभ दिन तय किया जाता है, इस दिन दुल्हन की मां अपने माता-पिता और अपने भाई और भाभी को आमंत्रित करने के लिए अपने माता-पिता के घर पहुंचती है। वह अपने दादा-दादी को भी आमंत्रित करती है। दुल्हन के नाना-नानी की शादी में उपस्थिति बहुत महत्वपूर्ण है।
माँ एक नई साड़ी पहनती है और मेहँदी को अपनी हथेलियों पर रखती है। वह परिवार के सदस्यों को उपहार देती है और उन्हें समारोहों का हिस्सा बनने के लिए आमंत्रित करती है। घर के कर्मचारियों को पैसे वाले लिफाफे यानि की नेग भी उपहार में दिया जाता है। वह अपने भाई और भाभी के माथे पर लाल तिलक करती है। उसके भाई भी उसके पूर्ण समर्थन और उपस्थिति का आश्वासन देते हैं। वे अक्सर अपनी बहन को रिटर्न गिफ्ट देते हैं।
इस समारोह में, चावल, गुड़, ड्राई फ्रूट्स आदि को एक प्लेट में रखा जाता है, जिसे बाद में सिलोफ़न पेपर से ढक दिया जाता है। एक अलग प्लेट पर, ’गट’ नामक सूखे नारियल भी रखे जाते हैं। यह सजाया हुआ सूखे नारियल भाई और उसकी पत्नी के तिलक या अभिषेक के लिए रखा जाता है।
भात भरना
जैसा की हमने पहले भी कहा है कि विभिन्न रस्मों में वधू के मामा की उपस्थिति बहुत ही महत्वपूर्ण है। यह रसम भी दुल्हन के मामा और मामी द्वारा की जाती है। यह शादी के दिन या उससे पहले का समारोह होता है जब दुल्हन के मामा और मामी अपने परिवार के साथ अपनी बहन के घर पहुंचता है।
दुल्हन के मामा और मामी का दुल्हन की माँ द्वारा गर्मजोशी से स्वागत किया जाता है। दुल्हन की मां द्वारा उनके माथे पर टेके के साथ घर के अंदर उनका स्वागत किया जाता है। दुल्हन के मामा उसके और उसके पूरे परिवार के लिए उपहार लाते हैं।
इस रस्म के दौरान, दुल्हन को एक सुंदर चौकी (चार पैरों के साथ एक छोटा स्टूल) पर बैठाया जाता है। फिर उसके मामा और मामी उसे कपड़े, और गहने जैसे सभी प्रकार के उपहार देते है। वह अपने मामा और मामी द्वारा दिए गए झुमके, हार, नाक की अंगूठी, चूड़ियाँ, पायल और पैर की अंगुली के छल्ले पहनती है।
इस समारोह में, बहन यानि की दुल्हन की माँ अपने भाई को चावल, दाल और गुड़ खिलाती है।