आनंद कारज इस शब्द का अर्थ है ‘हर्षित समारोह’। सिख विवाह सेरेमनी को आनंद कारज के नाम से जाना जाता है। सिख धरम में विवाह को स्त्री और पुरुष के बीच पवित्र बंधन के रूप में माना जाता हैं। शादी को दूल्हा और दुल्हन के बीच एक मजबूत और जीवन भर रहने वाला बंधन है। किसी भी अन्य धरम की ही तरह, सिख विवाह ना केवल दूल्हा व दुल्हन को बल्कि दो परिवारों को जोड़ता है।
सिख विवाह में भी कई रस्मो और रीति रिवाज़ो का पालन किया जाता है जो की सिख विवाह में लगभग एक सप्ताह तक चलती हैं। सिख विवाह में किसी भी अन्य विवाह की ही तरह विवाह से पहले (pre wedding ceremonies), विवाह (wedding ceremonies) और विवाह के बाद (post wedding ceremonies) कुछ रिवाज़ और परंपरा निभाई जाती है।
आम तौर पर आनंद कारज की रसम की शुरुवात पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब को ढकने के लिए कपडा खरीद कर की जाती है। किसी भी सिख वेडिंग में कुछ सेरेमनीज जरूर फॉलो की जाती है जैसे की
- कुरमई की रसम
- चुन्नी चढाई की रसम
- चूड़ा चढ़ाने की रसम
- गाणा बांधने, मेहँदी और हल्दी लगाने की रसम
- लेडीज संगीत की रसम
- घडी घड़ोली की रसम
कपडा खरीदने के बाद कुरमई की रसम होती है जिसे सगाई भी कहते है। कुरमई की रस्म में दोनों परिवार एक-दूसरे को उपहार देते हैं, और दुल्हन और दूल्हे के बीच रिंग्स भी एक्सचेंज की जाती है। आनंद कारज (Anand Karaj) से पहले चुन्नी चढाई की रसम और चूड़ा चढ़ाने की रसम भी की जाती है। चूड़ा चढ़ाने की रसम में दुल्हन के मामा दुल्हन को लाल और सफेद रंग की चूड़ियाँ देते हैं, जिस पर सुनहरे रंग के कलियर बंधे होते हैं। हिन्दू शादी की ही तरह सिख विवाह में भी गाणा बांधने, मेहँदी और हल्दी लगाने की रसम की जाती है। सिख विवाह में लेडीज संगीत और घडी घड़ोली की रसम भी बहुत धूमधाम से मनाई जाती है।
आनंद कारज की रसम
आनंद कारज हिंदू धर्म के विवाह से बिल्कुल अलग है। हिंदू विवाह में पंडित विवाह के लिए शुभ तिथि तय करता है जबकि सिख विवाह में दुल्हन और दूल्हे का परिवार आनंद कारज की तारीख तय करता है। आनंद कारज हिंदू धर्म के विवाह से बिल्कुल अलग है। हिंदू शादियों में जन्मपत्रियों व कुंडली दोष का मिलाना, शादी का मुहूर्त निकलना जरूरी होता है पर आनंद कारज में ये रस्म फॉलो नहीं किये जाते। सिख धर्म के अनुसार हर दिन पवित्र होता है और खुशी वाले किसी भी काम के लिए कोई सुबह समय या मूहूर्त नहीं होता। पुराने समय में, शादी के लिए वर या वधु, माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्य पसंद करते थे। यह रिवाज़ अब बदल गया है और इन दिनों लड़का या लड़की खुद ही अपना पार्टनर choose करते है।
ऐसे मनाई जाती है आनंद कारज की रसम
- आनंद कारज की रसम का समय
- लावा फेरे
- आनंद साहिब
- वेडिंग लंच
आनंद कारज की रसम का समय
आनंद कारज की रसम गुरुद्वारा के प्रार्थना हॉल में दिन के समय या दोपहर के समय होती है। दूल्हा और दुल्हन व उनके परिवार एक साथ बैठते है। आनंद कारज की रसम अरदास के साथ शुरू होती है जो की दंपती और उनके माता-पिता वाहेगुरु को याद करके करते है। अरदास के बाद शबद गाये जाते है। दूल्हा और दुल्हन गुरु ग्रंथ साहिब से झुक कर आशीर्वाद लेते हैं। दुल्हन का पिता केसरिया रंग के दुपट्टे का एक सिरा दूल्हे के कंधे पर और दूसरा सिरा अपनी बेटी के हाथ पर रखता है। इसके बाद दूल्हा और दुल्हन गुरु ग्रंथ साहिब जो की सिख धरम की पवित्र पुस्तक है उसके चारों ओर चार लावा लेते है। दूल्हा फेरो में आगे चलता है और उसके हाथ में एक किरपान (तलवार) होती है। फेरो के बाद दंपति अपने माता पिता और सभी बुजुर्गों से आशीर्वाद लेते है।
लावा फेरे
वैसे तो आपने देखा होगा या सुना होगा की शादी में सात फेरे होते है, लेकिन सिख शादी में केवल चार ही फेरे होते हैं और इन फेरों को पंजाबी में ‘लावां’ कहा जाता है। गुरद्वारा विवाह में गुरु ग्रंथ साहिब के चार लावा लेने के साथ श्लोक भी पढ़े जाते है। पहले फेरे में गुरु के नाम को जपते हुए सतकर्म के साथ जुड़े रहने की सीख दी जाती है। दूसरे फेरे गुरु को पाने का रास्ता दिखाया जाता है। तीसरे फेरे में संगत के साथ गुरु की बाणी बोलने की सीख दी जाती है। चौथे और अंतिम लांवे में मन की शांति पाने के शब्द बोले जाते है।
पहला श्लोक पढ़ने के बाद, दूल्हा और दुल्हन अपनी जगह से उठते हैं और धीरे-धीरे गुरु ग्रंथ साहिब के चारों ओर घूमते हैं, जिसमें दूल्हा दुल्हन से आगे होता है। चक्कर पूरा होने के बाद वे अपने स्थान पर वापस आ जाते हैं फेरे की शुरुआत गुरु ग्रंथ साहिब के प्रत्येक ग्रन्थि से होती है। लावा आनंद कारज के चार विवाह श्लोक हैं। प्रत्येक श्लोक पढ़ने के बाद, श्लोक से संबंधित शब्द बोला जाता है और दूल्हा और दुल्हन गुरु ग्रंथ साहिब को माथा टेकते हैं और खड़े होते हैं। इस प्रक्रिया को तीन बार दोहराया जाता है।
आनंद साहिब
लावा फेरे पूरा होने के बाद, रागी आनंद साहिब के शब्द गाते है। अंतिम लावा फेरे के बाद, एक भजन गाया जाता है जो गुरद्वारा विवाह समारोह के समापन का प्रतीक है। पूरी रागी मण्डली द्वारा एक अंतिम अरदास दी जाती है जिसके बाद कराह प्रसाद बांटा जाता है।
वेडिंग लंच
शादी समारोह के अंत में, मेहमानों और उपस्थित लोगों को गुरद्वारे के हॉल में शाकाहारी भोजन परोसा जाता है। इसके बाद, रोटी नामक एक रसम होती है, जो दुल्हन के एक विवाहित महिला के रूप में पहले भोजन का प्रतीक है। दुल्हन के ससुराल वाले एक कपड़े से भोजन की थाली को ढंकते हैं और उसे कुछ नकदी उपहार के साथ दुल्हन को भेंट करते हैं। दुल्हन इस भोजन को दूल्हे के साथ बाँट कर खाती है।