ईसाई धर्म में शादी कैसे की जाती है
ईसाई विवाह हमारे भारत में हिंदू विवाह की तरह ही बहुत सारी रस्मों से युक्त होता है। ईसाई विवाह में भी खूब सारी मस्ती नाच गाना और खाना पीना होता है। ईसाई दुल्हन हिंदू दुल्हनों की तरह लाल रंग का दुल्हन का जोड़ा नहीं पहनती और ना ही दूल्हा सफेद रंग का धोती कुर्ता पहनता है दुल्हन सफेद रंग की पोशाक पहनती है जिसे ब्राइडल गाउन भी कहते हैं। दक्षिण भारत में क्रिश्चियन दुल्हन सफेद साड़ी पहनती हैं लेकिन हर क्रिश्चियन दुल्हन अपने चेहरे को सफेद रंग की वैल जिसे कि घुंघट का ही प्रतिरूप माना जाता है, पहनती है। दूल्हा काले रंग का सूट पहनना पसंद करता है। तो आइए जानते हैं ईसाई विवाह की रस्मों को और किस तरह से यह हिंदू रस्मों से अलग है या उनके जैसी ही हैं।
मैच मेकिंग
मैच मेकिंग हर विवाह की तरह ईसाई विवाह में भी मैच मेकिंग का अहम योगदान है। ईसाई विवाह में भी यह एक अहम रोल अदा करता है हिंदू विवाह में लड़की लड़कियों के लिए उपयुक्त जीवनसाथी उनके माता पिता और परिवार वाले ढूंढते हैं लेकिन ईसाई परिवारों में लड़के लड़की अपनी पसंद के साथी से विवाह करते हैं। अधिकतर ईसाई परिवारों में लड़के/ लड़की अपनी पसंद के लड़के/लड़की से शादी करना पसंद करते हैं लेकिन अगर लड़का लड़की अपनी पसंद का चयन नहीं कर पाते तो उनके माता-पिता उनकी इस काम में मदद करते हैं। माता-पिता अखबारों, वेबसाइट जोकि मैचमेकर का काम करती हैं उनसे कुछ प्रोफाइल ढूंढते हैं या फिर दोस्तों रिश्तेदारों की मदद लेते हैं। मैचमेकिंग अखबारों या सोशल मीडिया और नेटवर्किंग साइट के द्वारा वर वधु का चुनाव एक निश्चित प्रक्रिया द्वारा होता है। इस प्रक्रिया में पहले लड़के लड़की का बायोडाटा अखबार में डाला जाता है। पसंद आने पर आपस में फोन पर या पत्र-व्यवहार द्वारा एक दूसरे के परिवार से बात कर ली जाती है। मैच मेकिंग साइट्स पर बायोडाटा और पिक्चर डाली जाती है। जहां से लड़के / लड़की के माता पिता अपने बच्चों के लिए उपयुक्त साथी ढूँढते हैं। लड़का/ लड़की का बायोडाटा और फोटो पसंद आने पर दोनों परिवार आपस में मिलते हैं और सब चीजें सही होने पर आगे की रस्म सगाई आदि शुरू होती है ।
सगाई की रस्म
सगाई की रस्म दुल्हन के घर में होती है जिसमें दूल्हे के घरवाले और रिश्तेदार आमंत्रित होते हैं। दूल्हा दुल्हन दोनों के परिवार वाले और करीबी मित्रों के सामने यह रस्म होती है। इसमें दूल्हा दुल्हन एक दूसरे को अंगूठी पहनाते हैं। ऑफीशियली परिवार वालों द्वारा डिसाइड कर दिया जाता है कि यह दोनों कपल है। इस रस्म के लिए दूल्हे के परिवार वाले दुल्हन के लिए उपहार लेकर आते हैं। दुल्हन के परिवार वाले दूल्हे के लिए और दूल्हे के परिवार वालों के लिए लौटते समय उपहार देते हैं। रिंग सेरेमनी के बाद दुल्हन के घरवालों की तरफ से एक प्रीतिभोज का आयोजन किया जाता है। यह रस्म काफी भीड़ भाड़ वाली नहीं होती इसे सादगी से ही अदा किया जाता है। लेकिन अब हर व्यक्ति चाहता है कि उसकी हर मेमोरी यादगार हो इसलिए वह हर फंक्शन को बहुत जोर शोर से और उत्साह से करना पसंद करता है।
प्री ब्राइडल शावर/ बैचलरेट पार्टी
यह रस्म दुल्हन की सहेलियों और उसके चचेरे भाई बहनों की तरफ से दुल्हन को एक पार्टी देकर रस्म के तौर पर की जाती है। इस रस्म में दुल्हन के सभी दोस्त और भाई बहन शामिल होते हैं। इसमें सभी लोग मजे करते हैं दुल्हन को सुगंधित उबटन लगाकर स्नान कराया जाता है। उसके बाद दुल्हन की सहेलियां और बहने दुल्हन के साथ मिलकर नाच गाना करते हैं। उन्हीं के द्वारा इस पार्टी को आयोजित किया जाता है। आमतौर पर यह शादी से पहले की एक प्री ब्राइडल पार्टी होती है। जिसमें मुख्यतः लड़के आमंत्रित नहीं होते यह पार्टी विशेष तौर पर महिलाओं और लड़कियों के लिए आयोजित की जाती है लेकिन अब दुल्हन के दोस्त व चचेरे भाई भी इस रस्म में आमंत्रित होने लगे हैं। इस अवसर पर दुल्हन 1 केक काटती है जिसमें थिम्बल छिपा होता है। कहते हैं कि जो लड़की थिम्बल वाला केक खाती है उसकी शादी बहुत जल्दी होती है। यह पार्टी विशेष तौर पर क्वारे जीवन की आखिरी पार्टी होती है। यह पार्टी इसलिए होस्ट की जाती है ताकि दुल्हन अपने बचपन के दोस्तों और भाई बहनों के साथ इस समय को यादगार बना सकें। वे अपनी पुरानी यादों को ताजा कर सके।
बैचलर पार्टी
लड़की की तरह लड़के के घर में भी एक बैचलर पार्टी रखी जाती है। इसमें दूल्हे के भाई और दूल्हे के दोस्त इस पार्टी को दूल्हे के लिए रखते हैं। इस पार्टी में नाच, गाना चलता है और खाना-पीना होता है। यह रात क्रिश्चियन दूल्हे की शादी से पहले की एक हसीन व यादगार रात होती है। क्रिश्चियन शादियों में इस अवसर पर शैपेन की बोतल खोली जाती है जिसे कि एक शुभ शगुन माना जाता है।
रोस सेरेमनी/ हल्दात की रस्म वह मेंहदी की रस्म
भारत में रहने वाले ईसाई परिवार इस रस्म को करते हैं। इस रस्म में उत्तर भारतीय ईसाई परिवारों में दूल्हा और दुल्हन के शरीर पर हल्दी व चंदन का उबटन लगाया जाता है। उत्तर भारत में इस रस्म को रोज की रस्म या हल्दात की रस्म भी कहते हैं। पश्चिम या दक्षिण भारत के क्रिश्चियन इस अवसर पर हल्दी व चंदन के साथ-साथ नारियल का तेल व नारियल भी लगाते हैं। इस रस्म का मुख्य उद्देश्य हिंदू समाज की तरह ही दूल्हा दुल्हन के रुप को निखारना और श्रृंगार करना ही होता है। इस उबटन को लगाने से उनके शरीर का आभा बढ़ती है। हल्दात की रस्म के बाद परिवार में नाच गाने का व खाने-पीने का दौर चलता है। हल्दात के बाद उसी दिन शाम को मेहंदी की रस्म होती है। जिसमें दुल्हन व दूल्हे के साथ-साथ उनके परिवार वाले भी मेहंदी लगवाते हैं। हर फंक्शन करने के बाद खाना-पीना, नाच गाना हिंदू परिवारों के साथ-साथ ईसाई परिवारों के भी फंक्शन के हिस्सा होते हैं।
वैवाहिक मास
रश्मि इस रसम में पादरी सभी को विवाह संस्कार के नियम और उद्देश्य के विषय में बताते हैं।
इस रस्म में गिरजाघर में शादी से पहले प्रार्थना सभा का आयोजन किया जाता है। जिसमें बाइबल पढ़ी जाती है और प्रार्थना की जाती है। शादी से पहले यहां पर भजन गाए जाते हैं
दुल्हन का स्वागत
क्रिश्चियन शादियों में दुल्हन को चर्च तक लाने के लिए दूल्हे के परिवार की तरफ से एक कार भेजी जाती। है जिसमें बैठकर दुल्हन गिरिजाघर तक आती है। कुछ जगहों पर दूल्हे के घर का सबसे शानदार व्यक्ति जिसे बेस्टमैन कहा जाता है वह दुल्हन को चर्च तक लेकर जाता है। दुल्हन का स्वागत यहाॅ पर दूल्हे के बेस्ट मैन के द्वारा किया जाता है। इस अवसर पर दूल्हा दुल्हन को सुंदर फूलों का बुके गिफ्ट करता है और उसे चर्च के अंदर लेकर जाता है। जहां पर उसका स्वागत दूल्हे का परिवार कर रहा होता है। चर्च के अंदर से पोडियम तक दुल्हन का पिता दुल्हन को लेकर जाता है। यहाॅ वो दुल्हन को दूल्हे के हाथ में सौंपकर उन दोनों को अपना आशीर्वाद देते हैं। इस अवसर पर दुल्हन के आगे उसकी छोटी बहनें फूलों की टोकरी लेकर चलती हैं जिन्हें वे दुल्हन के आगे बिखेरती जाती है। दूल्हा दुल्हन के पीछे उनके परिवार के सभी लोग चलते हैं।
शादी की रस्म
ईसाई विवाह में पादरी शादी की रस्में करवाते हैं व शादी की प्रतिज्ञा की उद्घोषणा करते हैं। जिसके पीछे पीछे दूल्हा दुल्हन उस प्रतिज्ञा को दोहरातै हैं। इससे पहले दूल्हा दुल्हन अपनी शादी की प्रतिज्ञा को लिखते हैं। फादर जीसस और गवाहों को साक्षी मानकर दोनों दूल्हा दुल्हन को पति पत्नी मानते हैं। पादरी प्रार्थना करते हैं और दूल्हा-दुल्हन को अपना आशीर्वाद देते हैं प्रार्थना के बाद लड़का, लड़की एक दूसरे को अंगूठी पहनाते हैं। कुछ परिवारों में दूल्हा दुल्हन को मंगलसूत्र पहनाता है। इस रस्म के बाद दूल्हा दुल्हन एक दूसरे को किस करते हैं। दूल्हा दुल्हन के रिश्तेदार और दोस्त भी उन्हें आशीर्वाद देते हैं। इसी के साथ शादी की रस्म पूरी हो जाती है। शादी की रस्म के बाद दुल्हन उसके हाथ में जो गुलदस्ता होता है उसे हवा में उछालती है। जो लड़की उस गुलदस्ते को पकड़ती है उसकी शादी जल्दी हो जाती है। दुल्हा दुल्हन के साथ उनके रिश्तेदार चर्च से बाहर निकलते हैं। शादी के बाद रिसेप्शन पार्टी का आयोजन किया जाता है। जिसमें दूल्हा-दुल्हन के परिवार वाले, रिश्तेदार और दोस्त आमंत्रित किए जाते हैं। दूल्हा-दुल्हन केक कट करते हैं। सभी परिवार के लोग शैम्पेन या वाइन के गिलास टकराकर दूल्हा-दुल्हन के शादी-शुदा जीवन के लिए प्रार्थना करते हैं। इसे दूल्हा-दुल्हन के नाम का टोस्ट रेंज किया जाना कहा जाता है। इस तरह से एक ईसाई शादी संपन्न होती है।