वरमाला को जयमाला भी कहा जाता है। वरमाला फूलों की एक सुंदर माला होती है, जिसमें आप अपनी पसंद के फूल लगवा सकते हैं। ज्यादातर इसमें गुलाब के फूल लगाए जाते हैं क्योंकि गुलाब के फूल स्नेह का प्रतीक होते हैं। वरमाला में सुंदर, ताज़े और पवित्र फूलों को एक धागे में पिरोया जाता है और एक माला बनाई जाती है। जिसे वर और वधू बेहद स्नेह से एक दूसरे को पहनाते हैं। यह परंपरा बहुत ही पहले से चली आ रही है। पौराणिक कथाओं में भी इसका उल्लेख मिलता है जहां वरमाला पहनाकर विवाह किया जाता था।
फूलों का महत्व
विवाह तो फूलों के बिना अधूरा है। विवाह की हर साज सज्जा में फूल होते हैं। ऐसे ही वरमाला को भी फूलों से बनाया जाता है जो कि एक दम ताज़ा होते हैं। हालांकि आजकल नकली फूलों से बनी मालाएं भी बाजार में उपलब्ध है। परंतु असली फूलों का तो महत्व ही कुछ और है। उन से आने वाली खुशबू मन को भा जाती है। फूलों का चयन भी अपनी मर्जी के अनुसार किया जा सकता है। वैसे तो ज्यादातर गुलाब के फूलों का और सफेद फूलों का इस्तेमाल वरमाला बनाने में होता है। लेकिन अपनी पसंद के अनुसार भी लोग फूलों का चयन करते हैं। बस फूलों का ताजा और पवित्र होना जरूरी है। बाजार में अलग-अलग तरह की जयमाला मिलती हैं जिन्हें आप अपनी मर्जी के अनुसार चुन सकते हैं और अलग-अलग फूलों से अपनी भावनाएं प्रकट कर सकते हैं।
पौराणिक काल से चली आ रही परंपरा
पौराणिक काल में गंधर्व विवाह करने के लिए दूल्हा और दुल्हन एक दूसरे को फूलों की माला अर्थात वरमाला पहनाते थे। वरमाला पहनाने के बाद उनका विवाह संपन्न माना जाता था। वरमाला पहनाकर दुल्हन दूल्हे को अपने जीवन साथी के रूप में स्वीकार करती थी। प्राचीनकाल में एक स्त्री अपना मन पसंद वर चुन सकती थी। जिससे भी विवाह करना चाहती थी उसे वरमाला पहनाकर उससे शादी कर सकती थी। पौराणिक कथाओं में इसके कई उदाहरण मिलते हैं जो है-
सियाराम विवाह
द्रौपदी और अर्जुन का विवाह
पृथ्वीराज का विवाह
शिव और गौरी का विवाह
सियाराम विवाह
त्रेतायुग में रामायण जब माता सीता का स्वयंवर आयोजित किया गया था तब उसमें राजा जनक ने अलग-अलग राज्यों के राजाओं को आमंत्रित किया था। उन्होंने यह कहा कि जो भी शिवधनुष को तोड़ेगा, सीता उसी से विवाह करेंगी। बहुत से राजाओं ने उसे तोड़ने का प्रयत्न किया, परंतु असमर्थ रहे। अंत में वहां उपस्थित गुरु वशिष्ठ ने राम को कहा कि वह प्रयास करें और श्रीराम उस धनुष को तोड़ने में समर्थ हुए। तभी सीता जी ने श्रीराम के गले में वरमाला पहनाई और दोनों का विवाह संपन्न हुआ।
द्रौपदी और अर्जुन का विवाह
इसी प्रकार द्वापर युग में भी द्रौपदी के विवाह के समय भी स्वयंवर आयोजित किया गया था। जिसमें राजा द्रुपद, जो कि द्रौपदी के पिता थे ने यह शर्त रखी कि जो भी मछली की आंख भेद देगा, उसी के साथ द्रौपदी का विवाह कराया जाएगा। अंत में राजकुमार अर्जुन ने मछली की आंख को भेद दिया और द्रौपदी ने उनके गले में वरमाला पहनाई और उन्हें अपने पति के रूप में स्वीकार किया।
पृथ्वीराज का विवाह
पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता का विवाह वरमाला पहनाकर ही संपन्न हुआ था। वरमाला पहनाने के बाद उन्हें शादीशुदा मान लिया गया।
शिव और गौरी का विवाह
शिवपुराण में भी जब शिव और पार्वती का विवाह हुआ था, तब पार्वती माता ने भगवान शिव के गले में जयमाला पहनाई थी और उनका विवाह तभी संपन्न हुआ था। इसी दिन को शिवरात्रि के रूप में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है।
आजकल का चलन
पौराणिक काल में केवल वधु की वरमाला पहनाया करती थी। परंतु आजकल ऐसा नहीं है। वर और वधू दोनों एक दूसरे को वरमाला पहनाते हैं और अपने जीवन साथी के रूप में स्वीकार करते हैं। यह माला लड़की वालों की तरफ से बनवाई जाती है और फिर पहले दुल्हन दूल्हे को माला पहनाती हैऔर बाद में दूल्हा दुल्हन को माला पहनाता है। सभी लोग इस रस्म का बहुत आनंद लेते हैं। आजकल जब भी दुल्हन अपने दूल्हे को वरमाला पहनाने के लिए आगे आती है, तो वर पक्ष के लोग दूल्हे को उठा लेते हैं ताकि दुल्हन दूल्हे को वरमाला ना पहना सके। परंतु फिर दुल्हन पक्ष के लोग भी दुल्हन को उठा लेते हैं ताकि दूल्हा दुल्हन वरमाला पहनाना सके।
स्टेज पर वरमाला पहनाने का चलन
आजकल विवाह में बहुत ज्यादा खर्चा किया जाता है। हजारों लाखों रुपए विवाह में लगाए जाते हैं। वरमाला पहनाने के लिए अलग से स्टेज भी बनाया जाता है। जहां पर दूल्हा और दुल्हन एक दूसरे को वरमाला पहनाते हैं। कुछ लोग घूमता हुआ स्टेज बनवाते हैं तो कभी-कभी ऊंचाई पर ले जाकर दूल्हा और दुल्हन एक दूसरे को वरमाला पहनाते हैं।
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