gujarati customs and traditions

गुजराती शादी कैसे होती है? गुजराती शादी की रस्मे Gujarati Wedding Rituals Step by Step in Hindi

गुजराती विवाह की रस्में, ગુજરાતી શાદી કી રસ્મે

हिंदू धर्म में विवाह एक पारिवारिक व सामाजिक उत्सव है जिसमें वर वधु के साथ उनके परिवार वाले, उनके नाते रिश्तेदार एवं समाज के लोग सम्मिलित होते हैं। हर राज्य में अलग-अलग तरीके से शादी की रस्में होती है। गुजराती समाज को हमेशा से ही अपने खानपान व्यवहार व संपन्नता के लिए जाना जाता है। क्या आप जानते हैं कि गुजरात में दहेज नहीं चलता। लड़के वाले लड़की वालों से किसी भी तरह की दहेज की कोई मांग नहीं करते। गुजराती शादी के रस्मों के साथ-साथ उनके दूल्हा दुल्हन के जोड़े की भी एक अलग ही बात होती है।

दुल्हन लाल बार्डर की सफेद घटचोले की बांधनी साड़ी में बहुत ही सुंदर लगती है। गुजराती दुल्हन शादी वाले दिन बांधनी बॉर्डर की ब्हाइट साड़ी पहनती है जिसके ऊपर एक पारदर्शी दुपट्टा उसे अलग ही रूप देता है। बाजूबंद नथ और पायल और साथ ही सर पर पहनने वाला मुकुट उसे लक्ष्मी मां सा रूप देता है। गुजराती दूल्हा सफेद रंग का धोती कुर्ता पहनता ।है और साथ ही सर पर पगड़ी नुमा सेहरा उसकी छवि को मनमोहक बनाता है।
तो आइए आज जानते हैं गुजराती शादी की रस्मों के बारे में कि गुजराती समाज में लड़के और लड़की की शादी की रस्में
कैसे और क्या होती है।

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gujarati wedding rituals step by step

चांदलो मातली की रस्म (ચાંદલી માતાની વિધિ)

गुजराती विवाह में वर वधु हिंदू धर्म के व गुजराती समाज के होते हैं। गुजराती समाज में विवाह के लिए वर वधु की जाति एक ही होनी चाहिए पर गुजराती समाज में आजकल प्रेम विवाह सामान्य हो गए हैं इसलिए लड़के और लड़की की जाति अलग-अलग भी हो सकती है।लेकिन गुजराती समाज में लहसुन प्याज व मांस मदिरा का प्रयोग वर्जित है इसलिए वे लोग अपने जैसे ही परिवार वाले वर या वधू को चुनना चाहते हैं।

आमतौर पर लड़के और लड़की को परिवार वाले, रिश्तेदारों व समाज वालों की मदद से ही चुना जाता है। एक परिवार में अगर लड़की/ लडकी है तो उसके लिए उपयुक्त वर/वधू की तलाश उसके सभी रिश्तेदार व परिवार वाले करना शुरू कर देते हैं और जब ऐसा लड़का/लड़की मिल जाते है तो पहले उनकी कुंडली मिलाकर देखी जाती है। अगर कुंडली आपस में मिल जाती है तो शादी की बात आगे बढ़ाई जाती है। इसी क्रम में चांदलो मातली की रस्म मनाई जाती है। इस रस्म में लड़की का पिता अपने तीन चार रिश्तेदारों को लेकर वर के घर जाते हैं और होने वाले दामाद के मस्तक पर लाल रंग का रोली से गोल तिलक करते हैं और कुछ शगुन देते हैं। इस रस्म में वधू का पिता एक पक्ष के लिए कुछ उपहार मिष्ठान आदि लेकर आते हैं। इसी दिन पंडित जी विवाह की एवं सगाई की तिथि एवं मुहूर्त में निर्धारित करते हैं।

गोल घना की रस्म (ગોલ ઘાના સમારોહ)

सगाई की रस्म को ही राज्यों में गोल घना की रस्म कहा जाता है गोल का अर्थ गुड़ से है और घना का तात्पर्य धनिया से है। गुड मुंह मीठा करने का तरीका और धनिया शुभता का प्रतीक है। गुड़ व धनिया आने वाले मेहमानों को बाटा जाता है। इस दिन वर पक्ष के लोग दुल्हन के लिए सिंगार का सामान, वस्त्र व फल, मेवा मिष्ठान आदि लेकर आते हैं। परिवार की सुहागन स्त्रियां वधु के आंचल में सुहाग पिटारी डालती हैं। उसके बाद वधु के परिवार वाले लड़के की गोद में फल, मेवे मिठाई व दक्षिणा रखते हैं। अंत में पहले लड़का लड़की की बाये हाथ की उंगली में अंगूठी पहनाता है और फिर लड़की लड़के की बाये हाध की उंगली में अंगूठी पहनाती है। लड़का लड़की अपने से बड़ों व पाॅच सुहागन औरतों का आशीर्वाद लेते हैं।

निमंत्रण पत्रं

यह विवाह की एक विशेष रस्म होती है जिसमें लड़की/ लड़के के माता पिता भगवान के मंदिर में जाकर उनसे प्रार्थना करते हैं और निमंत्रण पत्र देकर उन्हें आमंत्रित करते हैं। सबसे पहले निमंत्रण पत्र भगवान जी के मंदिर में शिव परिवार के आगे रखे जाते हैं। उन्हें इस विवाह के लिए आमंत्रित किया जाता है वे आए और वर-वधू को अपना आशीर्वाद दें।

भट्टी पूजने की रस्म (ભટ્ટી પૂજા વિધિ)

जब शादी के लिए भट्टी लगाई जाती है जो कि मिट्टी का बना या गैस का चूल्हा होता है। जिसमें पूरी शादी का भोजन बनता है तो उस भट्टी की पूजा की जाती है। इस रस्म में कुंवारी कन्या के हाथों से जिसे देवी का स्वरूप माना जाता है उस भट्टी की पूजा कराई जाती है। सभी देवी देवताओं का आह्वान किया जाता है कि वह विवाह रूपी यज्ञ को निर्विघ्न संपन्न कराएं और इस विवाह में अन्न, धन आदि किसी भी प्रकार की कोई कमी न रहने पाए।

मेहंदी की रस्म (મહેંદી વિધિ)

शादी के 2 दिन पहले मेहंदी की रस्म होती है। लड़की/लड़के दोनों के घरों में शादी से 2 दिन पहले यह रस्म की जाती है। इस दिन लड़की/ लड़के के परिवार वालें अपने घर में गीत संगीत करते हैं। मेहंदी के गाने अलग से ही होते हैं इस रात को मेंहदी की रात या रतजगे की रात भी कहते हैं। इस रात में पूरी रात गाना बजाना और मेहंदी का कार्यक्रम चलता रहता है। दुल्हन और दुल्हन की सहेलियां इस दिन विशेष रूप से मेहंदी लगवाती हैं। गुजराती समाज में में हाथों से लेकर कंधे तक मेहंदी से सजाया जाता है। हाथ में बाजू बंद और कमरबंद भी मेहंदी से ही बनते हैं। गुजराती समाज में पैरों में मेहंदी नहीं लगाई जाती आलता लगाया जाता है। लेकिन आधुनिकरण के दौर में लड़कियां अपने पैरों पर भी मेहंदी लगाना पसंद करती हैं। मेहंदी लगवाते समय दूल्हा दुल्हन दोनों अपने हाथों पर एक दूसरे का नाम लिखवाते हैं। जिसे ढूंढना बहुत मुश्किल होता है। दुल्हन के हाथों में पालकी, मोर, शंख, कमल,मछली आदि के डिजाइन बनाए जाते हैं। दूल्हे के हाथों में चंदा, सूरज या एक गोल टिक्की लगाकर शगुन किया जाता है।

संगीत (सांची ) की रस्म (સાંચી)

शादी से 1 दिन पहले संगीत की रस्म की जाती है। अगर लड़का लड़की एक ही जगह के रहने वाले हैं तो वह इस रस्म को मिलकर करते हैं इस रस्म में दोनों परिवार के लोग आपस में मिलते हैं और साथ-साथ गरबा, डांडिया, रास आदि गुजराती नृत्य करते हैं। इस रस्म में परिवार वाले अपने अपने नृत्य की अलग-अलग प्रस्तुति भी देते हैं। गुजराती विवाह में सादगी एवं संपन्नता दोनों ही देखने को मिलती हैं यहां पर औरतों को पुरुषों के बराबर ही माना जाता है इसलिए स्त्रियां हर रस्म में बढ़-चढ़कर भाग लेती है। परिवार के सभी सदस्य इस आयोजन में अपना योगदान देते हैं।

मंगल मुहूर्त की रस्म

इसमें भगवान गणेश जी की वंदना की जाती है उनका आह्वान किया जाता है और उनको आमंत्रित किया जाता है इस विवाह समारोह में आने के लिए और इस विवाह समारोह को निर्विघ्न कराने के लिए व वर वधु को अपना आशीर्वाद देने के लिए। भगवान गणेश को लड्डू अति प्रिय है इसलिए इस रस्म के लिए विशेष तौर पर गणेश जी के लिए बूंदी के बड़े-बड़े लड्डू बनाए जाते हैं जिन्हें मोटा लाडू कहा जाता है उसका प्रसाद सभी परिवार वाले व नाते रिश्तेदार ग्रहण करते हैं।

नवग्रहों, पितरों की पूजा ( ग्रह शांति पूजा)

मंगल मुहूर्त के रस्म के बाद नवग्रहों की शांति की पूजा की जाती है नवग्रहों की पूजा के बाद पितरों की पूजा की जाती है। उन सभी का आह्वान किया जाता है कि वे वर व वधू पर अपनी कृपा रखें व इस विवाह में अपना आशीर्वाद देकर इस विवाह को निर्विघ्न संपन्न करवाएं।
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हल्दी (पिठी) की रस्म

पंडित जी सगाई के दिन है हल्दी की रस्म भी निकाल देते हैघगुजरातियों में एक ही बार हल्दी चढ़ाई जाती है इस हल्दी में गुलाब, चंदन, इत्र आदि मिलाकर इसका उबटन लगाया जाता है ।पहले हल्दी लड़के को लगाई जाती है उसके यहां से जो हल्दी आती है वही हल्दी लड़की के लगती है। हल्दी लगाने के बाद लड़के को कच्चे दूध व जल से स्नान कराया जाता है यही वाला पानी बाद में लड़की के लिए आता है जिससे कि वह स्नान करती है। सुहागन स्त्रियां लड़की को एक लकड़ी की चौकी पर बिठाकर की चौकी पर बिठाकर यह उबटन लगाती है। हल्दी लगाने के बाद मंगल गान गाए जाते हैं

मामेरू मोसालू की रस्म (મામેરુ મોસાલુ)

उत्तर भारत में जिस तरह से भारत की रस्म होती है उसी तरह से गुजरात में भी मामा पक्ष के द्वारा ममेरा लाया जाता है इसमें दुल्हन की नथ विशेष रुप से मामा पक्ष के द्वारा लाई जाती है। दुल्हन की विवाह की पोशाक भी मामा पक्ष के द्वारा ही लाई जाती है। दुल्हन के माता पिता, भाई बहनों और होने वाले दूल्हे के कपड़े भी मामेरा में आते हैं। गुजराती समाज में भांजे भांजी का रिश्ता बहुत मान वाला माना जाता है। भांजी की शादी में मामा पक्ष अपनी सामर्थ्य अनुसार अपनी भांजी को मामेरा देता है। मामेरा में कपड़े और जेवर दिए जाते हैं। गुजराती विवाह में कन्या का मामा कन्या के पैरों के अंगूठे को को धुलवाने के बाद उस पानी को खुद पीता है।मौसालू की रस्म में दूल्हे के मामा और मौसा दुल्हन के घर उपहार लेकर जाते हैं और दुल्हन का अपने परिवार में स्वागत करते हैं।

परछावन करना नजर उतारना (પડછાયો)

दूल्हा जब अपने घर से बारात लेकर निकलता है तो उसकी बहन उसका परछावन करती है। वह दूल्हे के सर पर से अपने कपड़े में लिपटे कुछ सिक्के वारती है। परछावन के बाद वह यह सिक्के गरीब व्यक्तियों में दान कर देती है और मन ही मन में प्रार्थना करती है कि उसके भाई की शादी निर्विघ्न संपन्न हो। बहन प्रार्थना करती है कि शादी के बाद उसके भाई का वैवाहिक जीवन सुखमय हो।

वर्गाडो की रस्म/ घुड़चढ़ी की रस्म (વેર્ગાડો વિધિ)

इस रस्म में मां अपने बेटे की आरती उतारती है और बेटा घोड़े पर चढ़कर दुल्हन के घर के लिए प्रस्थान करता है। रास्ते भर आतिशबाजी और नाच गाना करते हुए धूम मचाते हुए दूल्हा दुल्हन के घर अपनी बारात के साथ जाता है।

जान की रस्म (જીવનની ધાર્મિક વિધિ)

द्वाराचार के समय दूल्हे की सास दूल्हे का स्वागत करती है और दूल्हे की आरती उतारती है। जान की इस रस्म में दूल्हे की सास दूल्हे का स्वागत करती है। आरती उतारते समय ही उसे दूल्हे की नाक पकड़कर खींचनी होती है यह रस्म 3 से 5 बार होती है हर बार दूल्हे को अपनी नाक खींचने से बचाने होती है। यह एक मजेदार रस्म होती है। इसका उद्देश्य सास दामाद में सौजन्य पूर्ण रिश्ता कायम करना होता है। जिसमें अंत में दामाद अपनी सास के चरण स्पर्श कर उसके आशीर्वाद लेता है। दूल्हे की सास उसका नाक खींच कर उसे अपने परिवार का सदस्य मानती है। जैसे उसका अधिकार अपने बच्चों पर होता है वैसे ही दामाद भी उनका अपना हो जाता है। वह यह आश्वासन देती है कि तुम भी आज से मेरे परिवार के सदस्य हो मैंने आपकी बेटी तुम्हें सौंप दी है अब उसका ध्यान तुम्हें रखना है। इसके बाद स्वागत की रस्म में कन्या पक्ष वाले वर पक्ष वालों का स्वागत करते हैं। उनके गले में पुष्पों की माला पहनाते हैं। वे आने वाले मेहमानों को शरबत व जलपान देते हैं और आगे की रस्मों के लिए उन्है उनके स्थान पर बिठाते हैं।

जय माल अंतर पाट

लड़के लड़की को स्टेज पर लाया जाता है जहां पर वह दूसरे को जयमाला पहनाते हैं। और अपने परिवार जनों रिश्तेदारों व दोस्तों के साथ फोटो खिंचवाते हैं इसके बाद वर वधु पक्ष के लोग मंडप में जाते हैं जहां विवाह की सारी रस्में संपन्न होती हैं वधु को उसके मामा मंडप तक लाते हैं यहां पर लड़के और लड़की के बीच में एक पर्दा लगा दिया जाता है जिससे कि वह दूसरे को देख ना पाए कन्यादान के समय यह पर्दा हटाया जाता है। उससे पहले यह पर्दा पूरे समय तक दोनों के मध्य रहता है बीच में कुछ विधियों में इस परदे को थोड़ा नीचे कर दिया जाता है।

कन्यादान, हस्त मिलाप गठबंधन और वरमाल की रस्म

हस्त मिलाप की रस्म में वधू का पिता अपनी बेटी का हाथ वर के हाथ में देता है और वर को कहता है कि आज से मेरी पुत्री आपकी हुई। कन्यादान की रस्म में पंडित जी कुछ मंत्रों का पाठ करते हैं और वधु के माता-पिता अपनी कन्या के पैर पूछ कर उसे वर के हाथों में सौंप देते हैं कन्या का पिता वर से अपनी बेटी का ध्यान रखने का आश्वासन लेता है। वधू का पिता अपनी बेटी को कुल और परिवार का सम्मान बढाने की सीख देता है। लड़के की बहनें वर और वधू का गठबंधन करती हैं। गठबंधन में वर के दोशाले से वधू की साड़ी के छोर को बांधा जाता है। वरमाला की रस्म में परिवार के बुजुर्ग वर और वधू के गले में एक सूत की बनी हुई रस्सी पहनाते हैं जोकि उन दोनों के हर काम मिलकर करने का संकेत होता है।

सप्तपदी की रस्म और मंगल फेरे की रस्म

कन्यादान और वरमाल के बाद सप्तपदी की रस्म शुरू होती है। सप्तपदी की रस्म में हिंदू विवाह में सात फेरे लिए जाते हैं किंतु गुजराती विवाह में चार 4 फेरे ही लिए जाते हैं। 4 फेरे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के प्रतीक हैं। इन चार फेरों को लगाकर दूल्हा दुल्हन आपस में एक दूसरे का धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष जीवन के हर मोड़ पर हर तरह से साथ निभाने का वादा करते हैं। वे आपस में वादा करते हैं कि वे धर्म के पथ पर साथ साथ चलेंगे? सही तरीके से जीविकोपार्जन करेंगे और अपनी संतान के लिए इस रिश्ते मैं प्रवेश करेंगे। सांसारिक नियमों का पालन करते करते ही वह मोक्ष के लिए भी एक दूसरे का साथ निभाएंगे। जिससे उनका यह जन्म और इसके बाद का समय सुख पूर्वक व्यतीत हो। दूल्हा-दुल्हन सात पग एक साथ चलते हैं और इसे ही गुजराती समाज में सप्तपदी की रस्म कहा जाता है।

कंसर की रस्म/ मुंहमीठा करना

विवाह की सारी रस्मों के बाद दूल्हा दुल्हन एक दूसरे को मीठा खिलाते हैं और अपने बड़ों का आशीर्वाद लेते हैं।

गुजराती शादी में मधुपर्क-पंचामृत

विवाह के बाद दूल्हे के पैर धुलवाये जाते हैं और उसे दूध शहद और मेवे युक्त पंचामृत पीने के लिए देते हैं। इस समय दामाद उनसे अपनी कोई इच्छा रखता है।दूल्हा उनसे मधुपर्क पीने के लिए नेग मांगता है जोकि वधू पक्ष वाले उसे थोड़ी नानूकर के बाद दे देते हैं या जिसे वे सशर्त खुशी-खुशी मान लेते हैं। और फिर दूल्हा उस पंचामृत को पी लेता है।

जूता चुराई की रस्म

शादी के समय एक विशेष रस्म होती है जूता चुराई की जिसका गुजराती शादी में हर साली को बेसब्री से इंतजार रहता है। साली अपनी पूरी सहेलियों की टीम के साथ चाक-चौबंद होकर दूल्हे राजा के जूते चुराने की व्यवस्था करती है। जब वह जूते चुरा लेती हैं तो अपना मनपसंद नेग मागने के बाद ही जूते दूल्हे राजा को पहनने को मिलते हैं।

चेरो पकरायो की रस्म

इस रस्म में दूल्हा सास की साड़ी को पकड़कर उनसे नेग मांगता है। सास और उनके परिवार वाले दूल्हे को नेग में उपहार और दक्षिणा भेट स्वरूप देते हैं। यह सारी रस्में रीति-रिवाजों का हिस्सा होती हैं ऐसा नहीं है कि कुछ मांगने के लिए इन रस्मों को बनाया गया है इन रस्मो का उद्देश्य थोड़ी सी छेड़छाड़, हंसी मजाक के साथ पारिवारिक रिश्ते मजबूत करना होता है और एक नए रिश्ते को अपना बनाना होता है।

दुल्हन की विदाई

दुल्हन की विदाई के समय उसकी मां सूप से उसके आंचल में चावल और कुछ सिक्के और रुपए डालती है। बेटी को उन चावलों को अपने पीछे डालना होता है जिसे मां अपने साड़ी के पल्लू में सहेजती है। इस रस्म का उद्देश्य है कि मां अपनी बेटी का आंचल खुशियों से भर रही है और बेटी जाते जाते अपने मायके को फलने फूलने का आशीर्वाद दे रही है।

घर नु लक्ष्मी

दुल्हन अपने ससुराल पहुंचती है तो उसकी सास उसका स्वागत आरती से करती है। वह उससे देहरी पुजवाती है और उसे घर में प्रवेश करवाती है। दूल्हे की बहने दूल्हे से बहू को घर के अंदर लाने का नहीं मानती है दूल्हा अपनी बहनों को शगुन देता है और नववधू का घर के अंदर प्रवेश होता है। गृह प्रवेश के बाद कथा और पूजा होती है। पूजा होने के बाद ही उसका कंगन जो कि पवित्र धागा होता है खुलवाया जाता है। इसके बाद ही आगे की रस्म होती है।

ऐकी बेकी की रस्म

इस रस्म में जब उनका कंगना खुल जाता है तो दूल्हा दुल्हन को पूजा के बाद मंडप में बिठाया जाता है। वहां परात में दूध में फूल डाल कर उन दोनों की अंगूठियां उसमें छुड़वा दी जाती है। वर वधु में से जो सबसे पहले अंगूठी निकालता है उसे ही इस शादी का सर्वे सर्वा मान लिया जाता है। कहा जाता है कि शादी में अब उम्र भर उसकी ही चलने वाली है। खैर यह तो एक हंसी मजाक की बात है शादी उम्र भर का रिश्ता होता है जिसमें पति-पत्नी दोनों मिलकर ही गृहस्थी की गाड़ी को खींचते हैं।

गुजराती शादी में रिसेप्शन

दुल्हन जब वर के घर आती है तो उसका स्वागत किया जाता है। उस दिन उस घर में मंगल गान गाया जाते हैं लेडीज संगीत का कार्यक्रम होता है। रात में दोनों पक्ष के लोग वर पक्ष द्वारा भोजन पर आमंत्रित किए जाते हैं। इन सारी रस्मों का यही उद्देश्य होता है कि दुल्हन अपने परिवार वालों के साथ भी मिल ले। उसे हंसी-खुशी का माहौल नए घर में मिले जिससे कि इस घर को भी वो अपना घर समझे। उसके परिवार वाले भी नए घर के सदस्य से मिलकर उनके व्यवहार को जान और समझ सकें।

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